आज के हम इस आर्टिकल में मुंशी प्रेमचंद की कहानी का सारांश बहुत ही बेहतरीन तरीके से समझेंगे। हम लोग मुंशी प्रेमचंद की कुछ प्रसिद्ध कहानियों का सारांश पढ़ेंगे।
यदि आप लोग अंत तक पढ़ते हैं तो मैं पूरे दावे के साथ कर सकता हूं कि मैं जिस तरीके से मुंशी प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां समझाने वाला हूं वह आपको इंटरनेट पर और कहीं नहीं मिलने वाली है।
इसलिए आप इसको पूरे अंत तक पढ़कर प्रेमचंद की सभी प्रसिद्ध कहानियों को समझ लीजिए।
सभी प्रसिद्ध मुंशी प्रेमचंद की कहानी का सारांश
प्रेमचंद जी ने अपने साहित्य कला में बहुत सी कहानी लिखी है। परंतु उनमें से उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध कहानी साबित हुई है जिनके हम लोग सारांश जाने वाले हैं।
आज हम लोग सभी प्रसिद्ध मुंशी प्रेमचंद की कहानी का सारांश को समझाने वाला हूं जोकि निम्न है –
- नमक का दरोगा
- कफन
- बूढी काकी
- पूस की रात
- पंच परमेश्वर
- ईदगाह
- दो बैलों की कथा
- शतरंज के खिलाड़ी
नमक का दरोगा कहानी का सारांश
यह कहानी एक नमक की दरोगा की है। यह उस समय की कहानी है जब नमक का व्यापार बहुत जोर – शोर से हो रहा था। इस कहानी के नायक मुंशी वंशीधर नौकरी की तलाश में निकलते हैं।
उनके पिताजी कहते हैं कि बेटा तुम कोई ऐसी नौकरी खोजना जिसमे उपरी कमाई बहुत ही ज्यादा हो, परंतु मुंशी वंशीधर बहुत ही ईमानदार व्यक्ति थे। सौभाग्य से इन्हें सबसे ऊंचे पद पर दरोगा की नौकरी मिल जाती है।
एक दिन मुंशी वंशीधर सोए रहते हैं तभी रात में उन्हें कुछ बैलगाड़ियों के आवाज सुनाई देती है। वह तुरंत जग जाते हैं और बाहर निकल कर देखते हैं तो बहुत सारे लोग बैलगाड़ियों से जा रहे थे।
मुंशी वंशीधर ने उन बैलगाड़ियों को रोका और बोला कि यह सब क्या है, उन्होंने बैलगाड़ियों की तलाशी ली तब उन्हें नमक का धेला मिलता है और वह समझ जाते हैं कि यहां कालाबाजारी हो रही है।
उन्होंने पूछा यह सब कौन करवा रहा है तब उन्होंने बताया यह इस गांव की सबसे अमीर, दौलतमंद और पहुंचे इंसान अलोपीदीन का है। वह तुरंत उसे बुलाते हैं परंतु अलोपीदीन पैसों में बहुत विश्वास रखता है और वह दरोगा को खरीदने का प्रयास करता है।
परंतु दरोगा बहुत ईमानदार रहता है और अलोपीदीन को पड़कर थाने ले जाता है। अगले दिन कोर्ट में दरोगा उसे खड़ा करता है। परंतु अलोपीदीन की राजनीति पकड़ बहुत मजबूत होती है और वह तुरंत छूट जाता है और दरोगा को नौकरी से निकाल दिया जाता है।
अगले दिन अलोपीदीन मुंशी वंशीधर के घर जाता है और उसे माफी मांगता है और उसे अपने मैनेजर के पद पर नौकरी के लिए रख लेता है। उसका कहना यह था कि उन्होंने आज तक ऐसा दरोगा नहीं देखा और उन्हें एक ईमानदार मैनेजर की जरूरत थी।
इसप्रकार मुंशी वंशीधर को इस पद से भी उच्च पद का ऑफर मिल जाता है और वह उसे स्वीकार कर लेता है। यह कहानी सच्ची ईमानदारी की है इसी प्रकार नमक की कहानी का सारांश यहीं पर समाप्त होता है।
कफन कहानी का सारांश
कफ़न मुंशी प्रेमचंद की कहानी का सारांश कुछ इस प्रकार है की इस कहानी में ऐसे बाप – बेटों की है जो बहुत ही गरीब होते हैं।
बेटा का माधव और बाप का नाम घुसु रहता है। यह दोनों घर के बाहर एक बुझी हुई अलाव के पास बैठे रहते हैं और बेटे की पत्नी अंदर प्रसव से जूझ रही थी और वह चिल्ला रही थी।
बाहर बैठे बाप और बेटे आपस में बातें करते हैं और बाप बेटे से कहता है की जा एक बार देख कर आ कि वह कैसी है इस पर बेटा माधव कहता है कि मैं तो नहीं जाऊंगा। उसे देख कर मैं डर जाऊंगा तुम ही जाओ और बाप जवाब देता है कि मैं कैसे अपनी बहू को देखूं। आज तक कभी जिंदगी कभी ऐसे नहीं देखा।
ऐसे में बेटा कहता है तो मर ही जाती तो सही रहती और वह दोनों वहीं पर सो जाते हैं। अगले दिन बेटा सुबह उठ कर देखता है की उसकी पत्नी बुधिया मर चुकी होती है और वह रोने लगते हैं।
बाप बेटे दोनों के रोने से आसपास के गांव वाले इकट्ठा होते हैं और उन दोनों को समझते हैं। चूँकि दोनों बहुत गरीब होते हैं तो उनके पास उसके अंतिम संस्कार के लिए भी पैसे नहीं होते हैं।
यह दोनों गांव के एक जमींदार के पास जाते हैं और उससे मदद मांगते हैं। वह देना तो नहीं चाहता पर दो रुपये दे देता है और दोनों बाप बेटे गांव वालों से भी चंदा मांग लेते हैं।
जैसे तैसे करके लकड़ियों का इंतजाम कर देते हैं और कफ़न खरीदने के लिए बाजार जाते हैं परंतु शाम हो जाता है और उन्हें कोई ढंग का कफ़न नहीं मिलती है।
वह आते समय रास्ते में एक शराब की दुकान पर रुक करके उस पैसे का शराब पी लेते हैं और वही सो जाते हैं। उधर गांव वाले जैसे तैसे करके उसकी पत्नी का अंतिम संस्कार कर देते हैं। यहीं पर कफन कहानी का सारांश समाप्त हो जाता है।
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बूढी काकी कहानी का सारांश
एक गांव में एक बूढी काकी रहती थी जिसके पति और बेटे दोनों की मृत्यु हो चुकी रहती है। बूढी काकी अपनी जायजाद अपने भतीजे बुद्धिराम के नाम कर देती है। बुद्धिराम के एक पत्नी रहती है और उसके एक बेटे और एक बेटी रहती है।
बुद्धिराम की बेटी बूढी काकी से बहुत प्रेम करती है। शुरू में बुद्धिराम और उसकी पत्नी बूढी काकी को बहुत मानते थे। परंतु समय के साथ यह दोनों बूढी काकी के साथ क्रूर हो गए और उनको भर पेट खाना तक नहीं देते थे।
एक दिन बुद्धिराम के बेटे की तिलक रहती है उस दिन भी बूढी काकी को खाना नहीं मिलता है। देर रात चुपके से बुद्धिराम की बेटी अपने ही हिस्से का खाना बुद्धि काकी को खिलाती है।
परन्तु बूढी काकी बहुत भूखी होने के कारण और पुड़ी मांगती है तब बुद्धिराम की बेटी कहती है कि खाना अब नहीं है। वह अपने हिस्से का खाना लाई थी। बूढी काकी कहती है कि मेहमानों के झूठे खाने के पास उन्हें ले चलो।
बूढी काकी जूठे खाने के पत्तल से बचे हुए खाने खाने लगती है। तभी बुद्धिराम की पत्नी नींद से जाग जाती है और देखती हैं की बूढी काकी मेहमानों के झूठे खाने खा रही है।
परंतु तब उसको क्रोध नहीं आता है और वह अपने किए पर पश्चाताप करती है और बूढी काकी से माफी मांगती है।
बुधीराम और उसकी पत्नी दोनों बूढी काकी से माफी मांगते हैं और बूढी काकी उन्हें माफ कर देती है। इस प्रकार बूढी काकी कहानी का सारांश यही पर समाप्त होता है।
पूस की रात कहानी का सारांश
मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा लिखी पूस की रात कहानी किसानो की कठिनाई को दर्शाती है। इस कहानी में हल्कू नामक एक किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था और वह खेती करता था।
परंतु आमदनी एक रुपए के भी नहीं थी। ऊपर से मालीक का बकाया बहुत हो चुका था। हल्कू की पत्नी ने पूस की रात के लिए कम्बल खरीदने के लिए तीन रूपये जुटाए थे। परंतु हल्कू के मालिक अपना बकाया मांगते हैं।
तब वह अपनी पत्नी से जमा किए हुए तीन रूपये मांगता है और उसकी पत्नी देने से इनकार कर देती है। वह कहती है कि उस पैसे से कंबल खरीदना है जो की पूस की रात में कार्य आएगा।
तब हल्कू कहता है कि मैं बकाया ना दू तो क्या मालिक की गलियां सुनु। ऐसे में उसकी पत्नी जमा की हुई तीन रूपये हल्कू को दे देती है।
जब पूस की रात आती है तो हल्कू अपने खेत में पुराने कंबल ओढ़ कर सोया रहता है परंतु उसे बहुत ही ठंड लगती है।
खेत में कुछ जानवर घुस जाते हैं परंतु हल्कू को इतनी ठंड लगती है कि वह खेत में जाकर नहीं देखा है। सुबह उठकर हल्कू और उसकी पत्नी देखती है कि नीलगाय पूरी फसल चर गयी होता है।
तब इस बात पर हल्कू की पत्नी कहती है की इससे अच्छा तुम मजदूरी करो, कम से कम एक रोटी तो नसीब होगा। पूस की रात मुंशी प्रेमचंद की कहानी का सारांश यही पे समाप्त होता है।
पंच परमेश्वर कहानी का सारांश
पंच परमेश्वर दो मित्रों की कहानी है जिनका नाम जुम्मन साहू और अलगू होता है। जुम्मन साहू की बूढी खाला ने अपनी पूरी वसीहत जुम्मन के नाम कर दी। शुरुआती में जुम्मन ने अपने बूढी खाला का बहुत खातेदारी किया।
परंतु आगे चलकर वह अपने खाला की खातिरदारी सही से नहीं कर रहा था। एक दिन खाला ने जुम्मन से कहा कि जुम्मन तुम हमें पैसा दे दिया करो मैं अपना अलग बना खा लूंगी।
इस पर जुम्मन पैसे देने से इंकार कर दिया। खाला ने पंचायत बैठाई और उस पंचो में जुम्मन का मित्र अलगू भी बैठा रहता है।
परंतु वह अपने दोस्त के प्रति कुछ बोल नहीं सकता था फिर उससे खाला कहती है कि पंचो में खुदा वास करते हैं।तब अलगू सोच समझकर खाला के पक्ष में फैसला सुना देता है। इस पर अलगू के मित्र जुम्मन नाराज हो जाते हैं।
पिछले वर्ष जुम्मन ने गांव के एक व्यक्ति को दो बैल बचा था जिसमें से एक बैल मर जाती है आगे चलकर बची हुई बैल ज्यादा परिश्रम करने के वजह से मर जाती है।
अलगू जब उस व्यक्ति से बैलों की पैसा मांगने जाते हैं तो वह व्यक्ति देने से इंकार कर देता है और कहता है कि तुमने बैल जो दी थी वह बीमार थी। इस पर अलगू ने पंचायत बैठाई और इस बार पंचो में एक सीट जुम्मन का होता है।
अब जुम्मन अलगू से बदला लेने का सोचता है फिर उसके अंदर से आवाज आती है कि वह इस वक्त न्याय की कुर्सी पर बैठा है तब वह एक सही फैसला लेता है और अलगू को बैलों की पैसा देने के लिए कहता है।
उसका कहना यह होता है कि जब अलगू ने बैल बेचा था तब बैल को कोई बीमारी नहीं होती थी। यह उस व्यक्ति के सही से न रखने का वजह से हुआ है।
इस पर अलगू खड़े होकर पंच परमेश्वर की जय का नारा लगाता है और वह अपने मित्र के गले जाकर लग जाता है। पंच परमेश्वर मुंशी प्रेमचंद की कहानी का सारांश यही पर समाप्त होता है।
ईदगाह कहानी का सारांश
ईदगाह कहानी हामिद नामक एक बच्चे की है जो पूरे साल ईद की इंतजार करता है। हामिद के माता-पिता का निधन बहुत पहले हो चुका होता है। अब हमीद अपने बूढी दादी के साथ रहता है।
जब ईद आता है तो हामिद को मेला करने के लिए केवल तीन पैसे मिलते हैं। मेला में अपने सभी साथियों को खिलौने खरीदते और मिठाइयां खाते देख उसका भी मन करता है कि वह भी खरीदे।
किंतु उसके पास इतने पैसे नहीं होते हैं तब हामिद अपनी बूढी दादी के लिए चिमटी लेता है। इस पर उसके सारे दोस्त हंसने लगते हैं तब वह अपने सारे दोस्तों से कहता है कि तुम लोगों के खिलौने टूट जाएंगे परंतु यह चिमटी हमेशा रहेगा।
वह घर जाता है और अपने बूढी दादी को चिमटी देता है और कहता है की रोटियां पकाते वक्त आपकी उंगलीया तवे से जल जाती है, अब नहीं जलेगी इसलिए मैंने यह चिमटी आपके लिए ली है। ईदगाह कहानी का सारांश यही पर समाप्त हो जाता है।
दो बैलों की कथा कहानी का सारांश
झुरी के पास दो बैल थे एक का नाम हीरा और एक का नाम मोती था और इन दोनों में बहुत प्रेम था। वह एक साथ खाते थे एक साथ रहते थे। झुरी ने भी बैलों का बहुत ही ख्याल रखा और उससे बहुत प्यार करता था।
एक दिन झुरी की पत्नी का भाई उसके घर आया और दोनों बैलों को अपने साथ ले गया। दोनों बैलों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह उसे क्यों और कहां ले जा रहा है।
झुरी की पत्नी का भाई मोती और हीरा से बहुत कठिन परिश्रम करवाता था और उसे मारता भी था। सुखा रुखा खाना भी देता था। एक दिन हीरा मोती दोनों वहां से भाग जाते हैं और रास्ते में उसे एक साड़ मिल जाता है।
हीरा मोती दोनों आपस में सूझ बूझकर उस साड़ को हरा देते हैं। रास्ते में उसे एक मटर खेत दिखती है इन दोनों को बहुत भूख लगता है और वह खाने जाते हैं।
तभी खेत वाले आ जाते हैं और हीरा मोती को कैद कर लेते हैं। जहां पर वह कैद होते हैं वहां पर और भी बहुत सारे जानवर होते हैं फिर से हीरा मोती दोनों अपनी बुद्धि का प्रयोग कर दीवाल को तोड़ देते हैं और सभी जानवरों को भगा देते हैं।
हीरा मोती झुरी के पास अपने घर वापस जाते हैं तो झुरी सारी बात समझ जाता है और उन्हें गले लगा लेता है और इस प्रकार दो बैलों की कथा कहानी का सारांश यहाँ पर समाप्त हो जाता है।
शतरंज के खिलाड़ी का सारांश
मुंशी प्रेमचंद की कहानी शतरंज के खिलाड़ी वाजिद अली शाह के उस समय का है जब पूरा लखनऊ भोग विलास में डूबा हुआ है। कोई नृत्य में मग्न है तो कोई नशे में मग्न है और कोई शतरंज के खेल में मग्न है।
इस कहानी के सबसे मुख्य पात्र मिरजा सज्जाद अली और अमीर रौशन अली जो की वाजिद अली शाह के जागीर रहते हैं।
वह दोनों शतरंज के खेल में बहुत मग्न रहते हैं और वह दोनों मिरजा सज्जाद अली के घर शतरंज का खेल खेला करते थे।
परंतु उनके बेगम का कहना यह था कि शतरंज खेल एक जुआ है जिसमें लोग मर बिला जाते हैं और एक दिन वह शतरंज उठाकर फेंक देती है। फिर वह दोनों मीर अली के घर शतरंज खेलने लगते हैं।
परंतु वहां भी ज्यादा समय तक नहीं खेलते हैं फिर वह शतरंज कहीं और खेलने लग जाते हैं। वक्त ऐसा आया की मिरजा सज्जाद अली शतरंज के खेल में हारने लगे और एक चाल ऐसा आया जब वह दोनों एक दूसरे का ही दुश्मन हो गए।
फिर उन्होंने तलवार निकाल कर आपस में लड़ाई करने लगे और वह दोनों इस संसार से चल बसे। इस कहानी के माध्यम से मुंशी प्रेमचंद जी यह कहना चाह रहे है की पूरा संसार अपने मूल कर्तव्य को छोड़कर भोग विलासिता में डूबा हुआ है। शतरंज के खिलाड़ी कहानी का सारांश यही पर समाप्त होता है।
इस प्रकार हम लोगों ने मुंशी प्रेमचंद की कहानी का सारांश को समझ लिया है। यह सभी प्रसिद्ध कहानी रही है जिसे मुंशी प्रेमचंद जी ने स्वयं लिखा है।
FAQs
हम लोगों ने सभी प्रसिद्ध कहानियों को समझ लिया है। अब मुंशी प्रेमचंद की कहानी का सारांश से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले कुछ सवाल का उत्तर हम लोग पढ़ेंगे। यदि आप प्रेमचंद की कहानियों में और रुचि रखते हैं तो आप नीचे दिए हुए मेरे इन सवालों का जवाब पढ़ सकते हैं।
प्रश्न: मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ क्या क्या अलग बनाती हैं?
उत्तर: मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ मानवीय भावनाओं, सामाजिक मुद्दों और संबंधित पात्रों की गहरी सम्बन्ध के कारण अलग बनातीहै।
प्रश्न: क्या मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं?
उत्तर: हाँ, मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ प्रासंगिक बनी हुई हैं क्योंकि वे कालातीत विषयों और सार्वभौमिक मानवीय अनुभवों को संबोधित करती हैं।
प्रश्न: मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में “ईदगाह” का क्या महत्व है?
उत्तर: “ईदगाह” महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक छोटे बच्चे की मासूमियत और निस्वार्थता को खूबसूरती से चित्रित करता है और लेखक की अपनी सुखद यादों को दर्शाता है।
प्रश्न: मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ आम लोगों के संघर्षों को कैसे उजागर करती हैं?
उत्तर: मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ आम लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों और कठिनाइयों को स्पष्ट रूप से चित्रित करती हैं, उनके लचीलेपन और दृढ़ता पर जोर देती हैं।
प्रश्न: मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ भारतीय साहित्य का अनिवार्य हिस्सा क्यों हैं?
उत्तर: मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ समाज, मानव स्वभाव और नैतिक मूल्यों में गहरी अंतर्दृष्टि के कारण भारतीय साहित्य का एक अनिवार्य हिस्सा मानी जाती हैं।
निष्कर्ष
आज के हमने इस आर्टिकल में मुंशी प्रेमचंद की कहानी का सारांश को बहुत ही बेहतरीन तरीके से समझा और पढ़ा है। प्रेमचंद जी ने अपने हिंदी काल में बहुत सारे कहानियों का संपादन एवं रचनाये की है।
प्रेमचंद के प्रसिद्ध कहानियों का सारांश आज हम लोगों ने पढ़ा है। यदि आपको प्रेमचंद की कहानी पसंद आई हो तो से अपने सभी मित्रों के पास भी साझा करें।