[PDF] विद्यापति का जीवन परिचय: Vidyapati Ka Jivan Parichay

5/5 - (5 votes)

क्या आप लोग भी ‘Vidyapati Ka Jivan Parichay’ के बारे में जानना चाहते है? तो आज मैं आपको इस लेख में विद्यापति का जीवन परिचय के बारे में ही बताने वाला हु.

बहुत सारे एग्जाम में विद्यापति का जीवन परिचय लिखिए प्रश्न आ जाता है इसलिए आप लोग इस लेख को अच्छे से पढ़े.

मैं आज Vidyapati Ji Ka Jivan Parichay को काफी अच्छे से बताने वाला हु और सबसे सही जानकारी भी देने वाला हु. आज काल इन्टरनेट पे लोग जीवन परिचय को भी घुमा फिरा करके बता दे रहे है. इसलिए आप लोगो को सही जानकारी मिलना आवश्यक है.

पूरा नामविद्यापति ठाकुर
अन्य नाममैथिल कवि कोकिल
जन्म वर्षसन् 1352 ई०
जन्म स्थानग्राम विस्फी, मधुबनी जिला, बिहार
पिता जी का नामगणपति ठाकुर जी
माता जी का नामगंगा देवी जी
गुरु का नामपण्डित हरी मिश्र
पत्नीदो पत्नीयाँ थी
पुत्र/पुत्रीतीन पुत्र और चार पुत्री थी
भक्तशिव के भक्त
उपाधिमहाकवि की
रसश्रृंगार और भक्ति रस
भाषासंस्कृत ,मैथिलि
शैलीमधुर, मनमोहक एवं अपभ्रंश
प्रमुख रचनायेकीर्तिलता, कीर्तिपताका एवं पदावली आदि
मृत्यु वर्षसन् 1448 ई०
मृत्यु स्थानबेगुसराय

प्रिय छात्रो हमने उपर एक टेबल के माध्यम से Vidyapati Ka Jivan Parichay को संक्षिप्त में पढ़ सकते है इसके मदद से आप लोग अपने हिसाब से भी अब विद्यापति जी का जीवनी को समझ सकते है.

Table of Contents

विद्यापति का जीवन परिचय PDF

प्रिय छात्रो अब मैं आप सभी को बिलकुल फ्री में विद्यापति का जीवन परिचय का पीडीऍफ़ फाइल देने वाला हु जिसके अंदर आपको Vidyapati Ka Jivan Parichay in Hindi और रचनाये भिमिल जाएगा. आप इस पीडीऍफ़ को पढ़ करके इनके जीवनी को और बेहतर तरीके से समझ जायेंगे.

  1. जन्म वर्ष एवं स्थान: विद्यापति, भारतीय साहित्य के महाकवि और भक्ति संत, जिनका जन्म सन् 1352 ई. के आस-पास बिहार के मधुबनी जिले के मैथिली ग्राम में हुआ था। उनका पूरा नाम महकवि विद्यापति ठाकुर था, और वे महकवि के तौर पर महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।
  2. माता – पिता का नाम: विद्यापति का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम गणपति ठाकुर था और माता का नाम गंगा देवी था। विद्यापति का जन्मस्थान मधुबनी जिले के ग्राम विस्फी में हुआ था।
  3. शिक्षा: विद्यापति ने अपनी शिक्षा पण्डित हरी मिश्र के नेतृत्व में प्राप्त की थी। उनके गुरु का साथ, वे विभिन्न कला और साहित्यिक विषयों में विशेषज्ञता प्राप्त करने में सफल रहे।
  4. कवि और साहित्यकार: विद्यापति को महाकवि के रूप में महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उनकी रचनाएँ विशेष रूप से प्रेम और भक्ति के विषयों पर आधारित हैं और उन्होंने संस्कृत और मैथिली भाषाओं में कई काव्य कृतियों की रचना की। उनकी काव्यरचनाएँ अद्वितीय सौंदर्य और भावनाओं को व्यक्त करती हैं।
  5. भक्ति आंदोलन: विद्यापति भक्ति आंदोलन के प्रमुख अनुयायी थे और वे भक्तिपूर्ण कविताओं के माध्यम से भगवान के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करते थे।
  6. मृत्यु वर्ष एवं स्थान: विद्यापति की मृत्यु सन् 1448 ई. के आस-पास बिहार के बेगुसराय में हुई। उनका जीवन और रचनाएँ आज भी भारतीय साहित्य के महत्त्वपूर्ण हिस्से के रूप में माने जाते हैं।

विद्यापति की कविताएँ भक्ति, प्रेम, और सौंदर्य को उच्चतम रूप में व्यक्त करती हैं और उनका काव्य साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है.

वे महान कवि और संत थे जिनका योगदान भारतीय साहित्य और धार्मिक धारा के क्षेत्र में अत्यधिक महत्व रखता है.

इसे भी पढ़े: Kalidas Ka Jivan Parichay

विस्तार से जानिए ‘Vidyapati Ka Jivan Parichay’ के बारे में

विद्यापति, उत्तर बिहार के मिथिला क्षेत्र के विशिष्ट गांव में 1352 ईसा पूर्व में जन्मे थे. उनकी जन्म तिथि के बारे में विवाद है क्योंकि उनकी रचनाओं और उनके प्रायदाताओं की विभिन्न जानकारियों के कारण संघटना है.

विद्यापति के पिता गणपति ठाकुर शिव के विशेष भक्त थे और तीरहुत के राजा गणेशवर के दरबार में पुजारी थे.

विद्यापति ने अपने जीवन में मैथिली और संस्कृत कवि, संगीतकार, लेखक, दरबारी और राजा के पुजारी के रूप में अपने अनौपचारिक प्रतिष्ठित किया.

उन्होंने भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति के बावजूद प्यार के गीत और भक्ति वैष्णव गीत लिखे. विद्यापति को ‘मैथिल पोएट कोकिल’ के नाम से भी जाना जाता है.

उनका प्रभाव सिर्फ मैथिली और संस्कृत साहित्य तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उत्तर पूर्वी भारतीय साहित्य परंपराओं तक फैलता था.

विद्यापति का जन्म और मृत्यु

विद्यापति का जन्म सन् 1352 ई० में बिहार के मधुबनी जिला के अंतर्गत ग्राम विस्फी में एक ब्राहम्ण परिवार में हुआ था.

विद्यापति का अपना करियर था जो उन्हें कई मौकों पर मिथिला के विभिन्न राज्यों की अदालतों में ले गया, उनका प्रारंभिक कार्यकाल कीर्ति सिंह के दरबार में था.

विद्यापति के माता पिता का नाम

विद्यापति के पिता जी का नाम गणपति ठाकुर एवं माता जी का नाम गंगा देवी था. विद्यापति की जन्मतिथि उनके स्वयं के लेखन और उनके संरक्षकों सहित विभिन्न स्रोतों से विरोधाभासी जानकारी के कारण कुछ हद तक अस्पष्ट है.

उनके पिता, गणपति ठाकुर, शिव के भक्त थे और तिरहुत के शासक राजा गणेश्वर के दरबार में एक पुजारी के रूप में कार्यरत थे.

विद्यापति का अन्य नाम

विद्यापति एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, जिन्हें मैथिली और संस्कृत कवि, संगीतकार, लेखक, दरबारी और शाही पुजारी के रूप में जाना जाता था.

शिव के प्रति अपनी भक्ति के बावजूद, उन्होंने प्रेम गीत और भक्तिपूर्ण वैष्णो गीत भी लिखे. उन्होंने ‘मैथिल कवि कोकिल’ उपनाम अर्जित किया और न केवल मैथिली और संस्कृत साहित्य पर बल्कि पूर्वी भारत की विभिन्न अन्य साहित्यिक परंपराओं पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा.

विद्यापति की पत्नी का नाम

विद्यापति की पत्नी का नाम ‘मन्दाकिनी’ था परन्तु उन्होंने दो पत्नियों, तीन बेटों और चार बेटियों के साथ पारिवारिक जीवन व्यतीत किया.

उनके एक पुत्र का नाम ‘हरपति’ था और एक पुत्री का नाम ‘चंद्रकला’ था. विद्यापति के पुत्र का भाषा कविता में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है और उनकी पुत्री चंद्रकला भी उनकी कविताओं में उल्लेख है.

विद्यापति का मित्रता

1402 से 1406 के वर्षों में विद्यापति और मिथिला के राजा शिव सिंह के बीच घनिष्ठ मित्रता देखी गई, जिसकी परिणति शिव सिंह द्वारा विद्यापति को अपना ग्रह ग्राम दृष्टि प्रदान करने के रूप में हुई, जो एक तांबे की प्लेट पर दर्ज एक महत्वपूर्ण सम्मान था.

देव सिंह के उत्तराधिकारी शिव सिंह के साथ उनकी दोस्ती ने प्रेम गीतों की ओर उनका ध्यान केंद्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

विद्यापति के गुरु कौन थे

इनके गुरु का नाम पण्डित हरी मिश्र था जिनसे इन्होने शिक्षा प्राप्त की थी. विद्यापति एक महान कवि थे इसलिए इन्हें हिन्दी साहित्य में महाकवि की उपाधि दि गयी है.

माना जाता है कि 1430 के आसपास या उससे भी पहले, विद्यापति अपने गृहनगर बिस्फी लौट आए थे, जहां वे अक्सर शिव मंदिर जाते थे.

जिन शासकों के लिए विद्यापति ने काम किया, उन्हें अक्सर मुस्लिम सुल्तानों के आक्रमण से खतरों का सामना करना पड़ता था. 1371 ई. में राजा गणेश्वर की रानी कीर्तिलता की तुर्की सेनापति मलिक अर्सलान द्वारा हत्या किये जाने की दुखद घटना एक उल्लेखनीय ऐतिहासिक घटना है.

विद्यापति की मृत्यु कब और कहां हुई?

सन् 1401 ई० तक, विद्यापति ने जौनपुर के सुल्तान अर्सलान को उखाड़ फेंकने और गणेश्वर के पुत्रों, वीर सिंह और कीर्ति सिंह को शासक के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

सुल्तान अर्सलान की सहायता से कीर्ति सिंह मिथिला की गद्दी पर बैठे. विद्यापति जिस उथल-पुथल वाले समय में रहे उसकी झलक उनकी साहित्यिक रचनाओं में स्पष्ट रूप से मिलती है. विद्यापति की मृत्यु सन् 1448 ई० के आस – पास बेगुसराय में हो गयी थी.

विद्यापति का साहित्यिक परिचय दीजिए

विद्यापति एक प्रमुख मैथिली कवि और साहित्यिक थे जो मध्यकालीन भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण रूप से जाने जाते हैं. उन्होंने अपने काव्य कौशल और साहित्यिक प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध थे.

उनका काव्य आज भी उनकी भक्ति, प्रेम, और भावनाओं को सुंदरता के साथ व्यक्त करने का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है.

विद्यापति ने अपने समय में साहित्यिक सृजनात्मकता का महत्वपूर्ण संदेश दिया और उनका काव्य आज भी भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है.

उनका साहित्य भारतीय साहित्य के अत्यंत मूल्यवान धरोहर में शामिल है, और उनकी कविताएँ आज भी पाठकों को अपनी अद्वितीय बौद्धिकता और सौंदर्य के साथ प्रेरित करती हैं.

बचपन से ही अपनी कुशाग्र बुद्धि के लिए जाने जाने वाले विद्यापति इस बात को लेकर लंबे समय से बहस का विषय थे कि वह हिंदी या बंगाली काव्य परंपरा से थे.

हालाँकि, अब यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि वह मैथिली भाषा के एक प्रमुख कवि थे. वह मध्यकालीन हिंदी साहित्य में एक उल्लेखनीय व्यक्ति के रूप में खड़े हैं, जिन्होंने लोगों के जीवन के सार को उनकी अपनी भाषा में समाहित किया है.

उनका व्यापक ज्ञान साहित्य, संस्कृति, संगीत, ज्योतिष, इतिहास, दर्शन, न्याय और भूगोल तक फैला हुआ था.

विद्यापति ने तीन भाषाओं: संस्कृत, अपभ्रंश और मैथिली में अपनी काव्य कौशल का प्रदर्शन किया, साथ ही समकालीन बोलियों और भाषाओं से परिचित होने का भी प्रदर्शन किया.

विद्यापति की प्रमुख रचनाएँ

विद्यापति की प्रमुख रचनाएँ उनके साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से हैं और उन्होंने विभिन्न भाषाओं में अपने काव्य कौशल का प्रदर्शन किया. निम्नलिखित हैं विद्यापति की प्रमुख रचनाएँ:

  1. पदावली: “पदावली” विद्यापति की सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण काव्य कृति में से एक है. इसमें भगवान कृष्ण और उनकी प्रेमिका राधा के प्रेमकथाओं को व्यक्त किया गया है. यह काव्य भक्ति और प्रेम के विषयों पर आधारित है और भाषा में सौंदर्यपूर्ण है.
  2. कीर्तिपताका: “कीर्तिपताका” विद्यापति की एक अन्य प्रसिद्ध काव्य कृति है, जिसमें राजा की प्रेमकथा का काव्यरूप में वर्णन किया गया है. इस काव्य में भी भाषा का उच्च सौंदर्य और कविता की आदर्श शृंगारिक रचना होती है.
  3. कीर्तिलता: यह काव्य विद्यापति की राजसी एवं रोमांचक कविता है, जिसमें राजा की कीर्ति के लिए वीर यात्रा का वर्णन किया गया है. इसमें विद्यापति ने राजसी प्रेम और युद्ध के भावनाओं को उद्घाटित किया है.
  4. भू-परिक्रमा: इस काव्य में भूमि की प्रशंसा और उसके महत्व का वर्णन किया गया है. यह काव्य भूमि के सौंदर्य को गीतमय भाषा में प्रस्तुत करता है.
  5. लेखनावली: “लेखनावली” विद्यापति की एक और महत्वपूर्ण रचना है, जिसमें उन्होंने कविता की विधियों और काव्यरचना के निरूपण के विषय में चर्चा की है.
  6. पुरुष-परीक्षा: इस काव्य में विद्यापति ने एक पुरुष की भौतिक सौंदर्य की प्रशंसा की है, जिसमें सौंदर्य के अद्वितीय आदर्श का वर्णन किया गया है.

ये रचनाएँ विद्यापति के काव्य कौशल और भाषा के सौंदर्य का अद्वितीय प्रतीक हैं और उनकी साहित्यिक महत्वपूर्ण उपलब्धियों को प्रस्तुत करती हैं.

विद्यापति के काव्य सौंदर्य का वर्णन

विद्यापति के काव्य सौंदर्य का वर्णन करते समय, हमें उनके काव्य के अद्वितीय और मनोहारी गुणों का महसूस होता है:

  • भाषा का अद्वितीयता: विद्यापति की कविताएँ उनकी भाषा के अद्वितीयता को प्रकट करती हैं. उन्होंने भाषा का उच्चतम स्तर पर प्रयोग किया है और अपने शब्दों के माध्यम से रस, भावना, और चित्रकला को सुंदरता से व्यक्त किया है.
  • रसों का समृद्धि: उनके काव्य में विभिन्न रसों का समृद्ध अद्वितीय रूप से प्रस्तुत किया गया है. वे वीर रस, शृंगार रस, भक्ति रस, और अन्य रसों का सुंदर संयोजन प्रस्तुत करते हैं, जिससे उनके काव्य का विशेष आकर्षण होता है.
  • रूपकाव्य का माहौल: विद्यापति के काव्य में रूपकाव्य का विशेष महत्व होता है. वे शब्दों का उपयोग इस तरीके से करते हैं कि वे चित्रकला के साथ मिलकर एक अद्वितीय चित्र बनाते हैं, जिससे काव्य का विशेष गहराई और विचार का समर्थन किया जाता है.
  • संगीतमयता: विद्यापति के काव्य में संगीत का महत्वपूर्ण स्थान होता है. वे अपने शब्दों को छंद, ताल, और संगीत के सांगीतिक तत्वों के साथ बढ़ाते हैं, जिससे काव्य का अद्वितीय ध्वनि बनता है.
  • चित्रकला की उपयोगिता: विद्यापति के काव्य में चित्रकला का विशेष महत्व होता है. उन्होंने अपने शब्दों के माध्यम से चित्रकला का वर्णन किया है और पाठकों को वास्तविक दृश्य का अहसास कराते हैं.

विद्यापति के काव्य सौंदर्य का मुख्य उद्देश्य पाठकों को भाषा, रस, और चित्रकला के साथ विचार का आनंद दिलाना है और उन्हें एक अद्वितीय सौंदर्य का अनुभव करने का मौका प्रदान करना है.

उनके काव्य से हम अद्वितीय और मनोहारी काव्य सौंदर्य का आनंद ले सकते हैं.

विद्यापति की भाषा – शैली

विद्यापति की काव्य भाषा संस्कृत एवं मैथिल रही है. इन्होने अपने रचनाओ में मथिली भाषा का प्रयोग किया है. मैथिलि विद्यापति की मातृभाषा थी इसलिए इनके काव्य भी ज्यादातर मैथिलि में पाए गए है.

विद्यापति की मैथिली भाषा का अद्वितीयता और उनकी भाषा के सौन्दर्य को देखकर हम उनके काव्य की महत्वपूर्ण विशेषताओं को समझ सकते हैं, और उनके साहित्यिक योगदान का मान सकते हैं.

उनकी मैथिली भाषा के माध्यम से वे अपने विचारों और भावनाओं को पाठकों तक पहुंचाते थे, और इससे उनके काव्य का अद्वितीय स्वरूप बनता है.

विद्यापति की काव्य शैली मधुर, मनमोहक एवं अपभ्रंश अर्थात अवहट्ट रही है. इन्होने श्रृंगार रस का ज्यादातर प्रयोग किया है. इनकी रचनाओ में श्रृंगार रस की पप्रधानता पायी जाती है.

इसलिए इनके काव्य ज्यादा मनमोहक एवं मधुर प्रेमवाणी को दर्शाते है. विद्यापति की शैली उनके काव्य के विशेष रूप से विश्वासी और सौंदर्यपूर्ण उपयोग की वजह से अद्वितीय थी.

विद्यापति ने अपने काव्य में विभिन्न प्रकार के श्रृंगारिक रसों का अद्भुत उपयोग किया. वे प्रेम, वीर, विरह, और रसिकता के भावों को अपनी कविताओं में व्यक्त करते थे.

उनकी रचनाओं में भक्ति भाव भी उत्कृष्ट रूप से व्यक्त होता है. वे भगवान के प्रति अपने अद्वितीय और गहरे भक्ति भाव को अपनी कविताओं में उजागर करते हैं.

Video Lecture on Vidyapati Ka Jivan Parichay

FAQs: Vidyapati Ka Jivan Parichay

अब हम लोग कुछ ऐसे प्रश्नों का उत्तर जानेंगे जो विद्यापति के जीवन परिचय से सम्बंधित है. यह प्रश्न आपके द्वारा ही बार – बार गूगल पर पूछे जाते है जिसका उत्तर मैं आपको अभी देनें वाला हु जिसे पढ़ करके आप लोग विद्यापति के बारे में और अच्छे से जान सकेंगे.

प्रश्न: विद्यापति का पूरा नाम क्या है?

उत्तर: विद्यापति का पूरा नाम “महाकवि विद्यापति थाकुर” था. वे एक महत्त्वपूर्ण मैथिली कवि और संत थे, जिन्होंने भक्ति और श्रृंगार रस के काव्य में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जन्म सन् 1352 ईसा पूर्व हुआ था, और वे मिथिला क्षेत्र में प्रसिद्ध थे. उनकी प्रमुख रचनाएँ “कीर्तिलता,” “पदावली,” और “कीर्तिपति” हैं.

प्रश्न: विद्यापति की प्रसिद्ध रचना कौन सी है?

उत्तर: महाकवि विद्यापति की कई प्रसिद्ध रचनाएँ हैं, लेकिन उनमें से तीन प्रमुख रचनाएँ इसके लिए जानी जाती हैं:
1.कीर्तिलता (Kirttilatā): यह विद्यापति की सबसे प्रसिद्ध रचना है, जिसमें वे भक्ति और भक्ति रस के कविताएं लिखते हैं. कीर्तिलता काव्य में वे भगवान विष्णु के प्रति अपनी भक्ति का अभिवादन करते हैं. इसमें भक्ति और प्रेम का अद्वितीय संगम होता है और विद्यापति की काव्यकला का अद्वितीय प्रतिष्ठान है.
2. पदावली (Padāvalī): यह भी विद्यापति की एक महत्वपूर्ण रचना है, जिसमें वे भक्ति और भक्ति रस के कविताएं लिखते हैं. पदावली में भगवान कृष्ण के लीला और भक्ति के माध्यम से दिव्य प्रेम का प्रतिष्ठान होता है.
3.कीर्तिपति (Kirttipatī): इस रचना में विद्यापति ने भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति का अभिवादन किया है. कीर्तिपति भक्ति और भक्ति रस के माध्यम से अपनी अद्वितीय भक्ति को व्यक्त करते हैं और इसमें आध्यात्मिक तथा काव्यकला का सुंदर समन्वय होता है.
ये तीन रचनाएँ विद्यापति की काव्यकला के प्रमुख प्रतीक हैं और उनके काव्य की महत्त्वपूर्ण भाग हैं.

प्रश्न: विद्यापति की कितनी रचना है?

उत्तर: विद्यापति की रचनाएँ कई हैं, लेकिन उनकी पूरी रचनाओं की संख्या को निर्धारित करना कठिन हो सकता है, क्योंकि कुछ रचनाएँ खो चुकी हो सकती हैं और कुछके अलावा अनगिनत छोटी रचनाएँ भी हो सकती हैं जो साहित्यिक खण्डों में नहीं शामिल की गई हैं. विद्यापति की तीन प्रमुख रचनाएँ हैं जिन्हें प्रमुखत: उचित माना जाता है.

प्रश्न: विद्यापति की पहली रचना कौन सी है?

उत्तर: विद्यापति की पहली रचना ‘पूरुषपरीक्षा’ (Purushapariksha) है. यह एक महत्वपूर्ण मैथिल काव्य रचना है, जिसमें वे पुरुषों की गुणों और कुशलताओं की महत्त्वपूर्ण परीक्षा करते हैं.

इस रचना में विद्यापति ने प्रतिष्ठानपूर्ण भृत्यों, नायिकाओं, और देवी-देवताओं की भक्ति की महिमा का भी वर्णन किया है. ‘पूरुषपरीक्षा’ विद्यापति के काव्य के प्रारंभिक रचनाओं में से एक है और इसका विशेष महत्त्व है क्योंकि इससे उन्होंने अपनी रचना करियर की शुरुआत की थी.

प्रश्न: vidyapati kis bhasha ke kavi hain

उत्तर: विद्यापति मैथिली भाषा के प्रमुख कवि थे. वे मैथिली में अपनी रचनाएँ लिखते थे और उन्होंने मैथिली साहित्य को अपने काव्य और संगीत के माध्यम से विकसित किया. विद्यापति का काव्य मैथिली के महत्वपूर्ण हिस्से का हिस्सा है और उन्होंने अपनी भाषा को एक महत्वपूर्ण साहित्यिक परंपरा की ओर बढ़ाया.

अंत में क्या सिखा

प्रिय छात्रो आज हम लोगो ने ‘Vidyapati Ka Jivan Parichay’ बारे में बहुत ही विस्तार से जाना है. हम लोगो ने विद्यापति के जीवन के बहुत संघर्षो के बारे में भी सिखा है.

हम लोगो ने जो भी आज सिखा है उससे हम अपने एग्जाम में काफी अच्छा स्कोर कर पाएंगे.

हम लोगो ने विद्यापति का जीवन परिचय का एक पीडीऍफ़ फाइल भी साझा किया है जिसे आप लोग पढ़ सकते है.

साहित्यिक परिचय के साथ ही साथ हम लोगो ने विद्यापति की प्रमुख रचनाएँ के बारे में भी जाना है. विद्यापति की भाषा – शैली को भी जाना है. मुझे उम्मीद है की आपको आज की विद्यापति का जीवनी काफी अच्छे से समझ में आई है.

प्रिय स्टूडेंट्स, मेरा नाम आशीर्वाद चौरसिया है और मैंने हिन्दी विषय से स्नातक भी किया है। आपको इस ब्लॉग पर हिन्दी से जुड़े सभी तरह के जानकारिय मिलेगी। इसके अतिरिक्त आपको सभी क्लासेज की नोट्स एवं विडियो लेक्चर हमारे NCERT eNotes YouTube चैनल पर मिल जाएगी।

SHARE ON:

1 thought on “[PDF] विद्यापति का जीवन परिचय: Vidyapati Ka Jivan Parichay”

Leave a Comment