प्रिय विधार्थियों इस लेख में Acharya Ramchandra Shukla Ka Jeevan Parichay पढने वाले है पूरा विस्तार से जो आपके एग्जाम के लिए अति महत्वपूर्ण टॉपिक है. इस लेख में शुक्ल जी की भाषा शैली व रचनाएँ क्या-क्या है सारे टॉपिक को एक-एक कर के पढने वाले है.
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प्रिय छात्रो हम आपको आज आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय pdf में भी देंगे जिसके ऐड से आप अपने तैयारी को और बेस्ट कर सकते है.
यदि आप लोग इस लेख को अंत तक पढ़ते है तो मैं दावा करता हु की आपको रामचंद्र शुक्ल जी का पूरी जीवनी अच्छे से याद हो जाने वाली है.
संक्षिप्त में जानिए ‘Acharya Ramchandra Shukla Ka Jeevan Parichay’ को
प्रिय छात्रो हम लोग पहले एक टेबल के माध्यम से Acharya Ramchandra Shukla Ka Jeevan Parichay को समझेंगे उसके बाद हम विस्तार से एक – एक पॉइंट को समझेंगे.
यदि आप लोग केवल यह टेबल को अच्छे से अपने दिमाग में फिट कर लेते है तो आप सिर्फ इसके मदद से ही बोर्ड एग्जाम में अच्छे से इनकी जीवनी को लिख सकते है.
पूरा नाम | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल |
अन्य नाम | आचार्य जी |
पिता का नाम | पं० चन्द्रबली शुक्ल |
माता जी का नाम | विभाषी देवी |
जन्म वर्ष | 4 अक्तूबर सन् 1884 ई० |
जन्म स्थान | बस्ती जिले का अगोना ग्राम |
शिक्षा | हाईस्कूल (मिर्जापुर) |
सम्पादन | शब्द सागर |
लेखन- विद्या | आलोचना, निबन्ध, नाटक, पत्रिका, काव्य, इतिहास आदि |
भाषा-शैली | शुद्ध साहित्यिक, सरल सबसे मीठा एवं अच्छा व्यावहारिक भाषा |
प्रमुख रचनाएँ | चिन्तामणि, विचारवीथी, रसमीमांसा और त्रिवेणी, अभिमन्यु वध, ग्यारह वर्ष का समय , हिन्दी साहित्य का इतिहास आदि |
पत्नी का नाम | सावित्री देवी |
साहित्य में स्थान | निबन्धकार, अनुवादक, आलोचक, सम्पादक के रूप में |
पाठ का नाम | मित्रता |
मृत्यु वर्ष | 2 फरवरी सन् 1941 ई० |
मृत्यु स्थान |
आप लोगो ने टेबल के माध्यम से रामचंद्र शुक्ल जी का जीवन परिचय को समझ ही लिया होगा. यदि आप इतना ही अच्छे से समझे होंगे तो फिर इनकी पूरी जीवनी को बड़े आराम से आप लिख सकते है. अब हम लोग इंही के जीवन परिचय को और विस्तार से समझेंगे.
विस्तार से जानिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय क्लास 10th
जीवन-परिचय(1884 से 1941ई०): आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म सन् 1884 ई. में उत्तर प्रदेश राज्य के अंतर्गत आने वाले एक बस्ती जिला के एक अगोना नामक ग्राम में शुक्ल जी का जन्म हुआ था.
इनके पिता का नाम पं. चन्द्रबली शुक्ल तथा माता का नाम श्रीमती विभाषी देवी है. इनकी माता एक धार्मिक महिला थीं.
इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इनके पिता के पास मिर्जापुर में हुई और मिशन स्कूल से दसवी की परीक्षा उत्तीर्ण की थी. इन्होंनें इण्टरमीडिएट की परीक्षा के लिए इलाहाबाद में दाखिला लिया परन्तु परीक्षा से पहले ही विद्यालय छूट गया.
इसके बाद इन्होंने मिर्जापुर के एक न्यायालय में नौकरी लग गई और कुछ दिन बाद न्यायालय की नौकरी छोड़कर ये मिर्जापुर के मिशन स्कूल में चिलकला कें अध्यापक भी रहे है.
इस पद पर रहते हुए भी इन्होंने अनेको जैसी कई कहानी, कविता निबन्ध, नाटक इत्यादि की रचना शुक्ल जी ने की है.
इनकी रामचन्द्र शुक्ल जी विद्वत्ता एवं प्रतिभा से प्रभावित भी होकर इन्हें ‘हिन्दी-शब्दसागर के सम्पादन कार्य में शुक्ल जी ने सहयोग के लिये काशी नागरी प्रचारिणी एक सभा में ससम्मान बुलाया गया था.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी ने काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका का सम्पादन 19 वर्षो तक शुक्ल जी ने किया था.
कुछ समय पश्चात इनकी नियुक्ति काशी हिन्दी विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक के रूप में हो गई और कुछ दिनो पश्चात ये हिन्दी विभाग के अध्यक्ष भी हो गये थे. स्वाभिमानी और हिन्दी के महान निबन्धकार स्वं साहित्यकार सन् 1941 ई. में दिवांगत हो गये.
आचार्य राम चन्द्र शुक्ल का जन्म वर्ष एवं स्थान
आचार्य रामचंद्र शुक्ल, भारतीय साहित्य के प्रमुख नामों में से एक, का जन्म 4 अक्टूबर 1884 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अगोना गाँव में हुआ था.
उन्होंने हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया और अपनी विशेष रचनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्होंने हिन्दी भाषा को प्रोत्साहित किया और उसके विकास में योगदान किया.
उनकी जीवनी और काव्यरचनाओं ने उन्हें भारतीय साहित्य के महान व्यक्तित्वों में से एक बना दिया. उनका जन्म स्थान आज भी साहित्य प्रेमियों के लिए महत्वपूर्ण है.
आचार्य राम चन्द्र शुक्ल का माता – पिता
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पिता का नाम पं. चंद्रबली शुक्ल था, जो एक प्रतिष्ठित कानूनगो (लॉयर) थे. उन्होंने अपने जीवन में कानून के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्हें मिर्ज़ापुर सदर कानूनगो के पद पर नियुक्त किया गया था.
उनकी समझदारी और कानूनी ज्ञान ने उन्हें समाज में सबके बीच प्रतिष्ठित बनाया. उनका साथ-साथ अपने परिवार का पूर्ण ध्यान रखना भी उनकी माता के प्रति उनकी साजगता का प्रमुख कारण था.
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के माता का नाम ‘विभाषी देवी’ था. चंद्रबली शुक्ल का जीवन और उनकी कानूनी प्रतिष्ठा आचार्य रामचंद्र शुक्ल को प्रेरित करने में मदद करी.
आचार्य राम चन्द्र शुक्ल का शिक्षा
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपनी शिक्षा का प्रारंभ अपने पिता के साथ हमीरपुर, उत्तर प्रदेश, में किया. उन्होंने मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर मिर्ज़ापुर के लंदन मिशन स्कूल से स्कूल फाइनल परीक्षा में भी सफलता प्राप्त की.
हालांकि उनके पिता की इच्छा थी कि वे वकालत पढ़ें, लेकिन उनकी रुचि साहित्य में थी. इसलिए वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने की कोशिश करते रहे और अपनी विद्या को स्वाध्याय के माध्यम से बढ़ावा देते रहे.
उन्होंने संस्कृत, हिन्दी, और अंग्रेजी का गहरा ज्ञान प्राप्त किया और हिन्दी साहित्य के विकास में योगदान किया.
आचार्य राम चन्द्र शुक्ल का वैवाहिक जीवन
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की पत्नी का नाम ‘सावित्री देवी’ था. आचार्य रामचंद्र शुक्ल का वैवाहिक जीवन सामान्य और संयमित था.
उन्होंने 1903 में वैवाहिक बंधन में बंधने का निर्णय लिया और अपनी जीवन संगिनी के साथ समर्थनी, स्नेहपूर्ण, और साथी के रूप में बिताया.
उनके इस विवाह का परिणाम एक संतुलित और सुखमय जीवन था, जिसमें वे अपने परिवार और कार्यों को समझदारी से संरक्षित करते रहे.
उनकी पत्नी ने भी उनके लिए साथी के रूप में उनका साथ दिया और उनके योगदान को समर्थन दिया.
आचार्य राम चन्द्र शुक्ल का मृत्यु वर्ष एवं स्थान
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का आकस्मिक निधन 2 फरवरी 1941 को हुआ, जो काशी, उत्तर प्रदेश, में हुआ था. उनकी मृत्यु ने हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण युग का अंत किया.
लेकिन उनके योगदान का प्रभाव आज भी महसूस किया जाता है. उनके लेखन का स्वाधीनता संग्राम के समय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया और उनके साहित्यिक योगदान ने हिन्दी भाषा को गौरवान्वित किया.
उनका निधन एक महत्वपूर्ण व्यक्तिगतता के दौर का समापन किया, लेकिन उनकी कविताएँ और विचार आज भी हमारे बीच जीवंत हैं.
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय pdf
प्रिय छात्रो अब हम लोग आप सभी को ‘acharya ramchandra shukla ka jeevan parichay pdf’ देने वाला हु. आपको आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का जीवन परिचय इस पीडीऍफ़ में मिल जाएगा साथ ही इनका साहित्यिक परिचय भी इस पीडीऍफ़ में मौजूद रहेगा.
यदि आप लोग बोर्ड एग्जाम में जीवन परिचय को याद करना चाहते है तो यह पीडीऍफ़ आपकी काफी हेल्प करेगी.
File Name | आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय |
File Size | 464 KB |
No of Page | 04 |
Quality | High |
Price | Free |
सिर्फ यही नही आपको इस पीडीऍफ़ में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय और रचनाएँ भी मिलेगी क्योंकि हर वर्ष आपके बोर्ड एग्जाम में यह आता है.
इस पीडीऍफ़ को डाउनलोड करने के लिए आपको निचे दिए गए बटन पे क्लिक करना है या फिर आप लोग डायरेक्ट पीडीऍफ़ का व्यू देख सकते है और अपना नोट्स बना सकते है.
जो छात्र आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय कक्षा 10 pdf डाउनलोड करना चाहते है यह un लोगो के लिए भी है क्योंकि यह जीवन परिचय सभी तरह के छात्रो के लिए है.
आप लोग इनके जीवन परिचय को अपने अनुसार शब्दों को कम या ज्यादा कर सकते है.मैंने आपको विस्तार से समझा दिया है आप लोग अपने अनुसार कम शब्दों में ही बोर्ड एग्जाम में लिखियेगा जितना पूछा गया हो.
शुक्ल जी का प्रमुख रचनाएं
प्रिय विधार्थियों अब इस लेख में Acharya Ramchandra Shukla Ka Jeevan Parichay के अंतर्गत इनकी प्रमुख रचनाएँ को पढने वाले है. इस लेख में सबसे धासु आसान ट्रिक से पढने वाले है जो इनकी रचनाएँ निम्नलिखित है.
Trick:-आसुर तु ही जाँ त्रिवेणी
- आ-आनन्द कादम्बिनी
- सू-सूरदास
- र-रस मिमांश
- तु-तुलसी
- ही-हिन्दी शब्द सागर
- जा-जायसी (ग्रंथावली)
- त्रिवेणी- त्रिवेणी
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का साहित्यिक परिचय pdf
इस लेख में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय क्लास 10th को पढ़ चुके है जो अब इनकी आचार्य रामचंद्र शुक्ल का साहित्यिक परिचय pdf को पढने वाले है.
यह साहित्यिक परिचय आपको सभी एग्जाम में पूछ सकता है तो चलिए अब साहित्य परिचय को पूरा अंत तक पढ़ते है.
साहित्यिक परिचय:- शुक्ल जी एक कुशल सम्पादक भी थे और इन्होंने सूर, तुलसी, जायसी जैसे महाकवियों की प्रकाशित कृतियों का सम्पादन कार्य किया.
इन्होंने नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ और ‘आनन्द कादम्बिनी’ जैसी पत्रिकाओं का सम्पादन कार्य किया है.
‘हिन्दी शब्द ‘सागर’ का भी इन्होंने सम्पादन किया व शुक्लजी ने निबन्धकार के रूप में हिन्दी-साहित्य की विशेष सेवा की है.
इन्होंने विशेष रूप से मनोभाव सम्बन्धी और समीक्षात्मक निबन्ध लिखे है और इनके समीक्षात्मक निबन्धों की गणना साहित्यिक निबन्धों में की जाती है.
आलोचक के रूप में शुक्लजी ने हिन्दी-साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की इन्होंने ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ नामक कृति की रचना कर हिन्दी को बड़ा योगदान दिया था.
शुक्लजी में कवि प्रतिभा भी थी व इन्होंने कहानी विधा पर भी अपनी लेखनी चलाई है.
शुक्ल जी ने जहाँ मौलिक ग्रन्थों की रचना की वहीं दूसरी भाषाओं के ग्रन्थों का हिन्दी में अनुवाद भी किया. इस प्रकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य की अनन्त सेवा की है.
हिन्दी साहित्य में स्थान
हिन्दी साहित्य में स्थान:- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी साहित्य के यह सबसे अच्छे व अमर साहित्यकार हैं. इन्होंने हिन्दी साहित्य में एक मौन साधक और मार्ग प्रदर्शक दोनों ही रूपों में कार्य किया था. इन्हें हिन्दी साहित्य जगत में आलोचना का समाद कहा, जाता है
और इनके द्वारा रचित मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक निबन्धों का अपना विशेष महत्व है. हिन्दी-साहित्य में इनका स्थान इसी बात से सर्वोत्कृष्ट सिद्ध होता है कि इनके समकालीन हिन्दी गद्य के युग को ‘शुक्ल युग’ की संज्ञा दी गई है.
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा शैली
भाषा-शैली भाषा:- शुक्ल जी ने अपने साहित्य में संयत, प्रौढ़, परिष्कृत और साहित्यिक खड़ीबोली को अपनाया है और इनकी भाषा विषयानुकूल है.
साथ ही भाषा दुरूह, क्लिष्ट, गम्भीर और शुद्धता का पुट लिए हुए है. आचार्य रामचंद्र जी की भाषा का एक रूप अधिक सरल और व्यावहारिक यानि की सबसे मीठा व अच्छा है.
इसमें संस्कृतनिष्ठ भाषा के स्थान पर हिन्दी की प्रचलित शब्दावली का प्रयोग संस्कृतनिष्ठ भाषा के स्थान पर हुआ है. यत्र-तत्र उर्दू, फारसी और अंग्रेजी के शब्द भी प्रयोग किए गए है.
इनकी भाषा में मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भी देखने को मिलता है. भाषा का आवश्यकतानुसार प्रयोग करने में शुक्ल जी अत्यन्त समर्थ थे.
शैली-भाषा:- की तरह ही शुक्लजी की शैली भी अत्यन्त पुष्ट और प्रौढ़ है. उनकी शैली में ‘गागर में सागर’ भरने को महान् शक्ति है.
- आलोचनात्मक या समीक्षात्मक शैली:- शुक्लजी ने इस शैली का प्रयोग अपने आलोचनात्मक निबन्धों में किया इस शैली में इन्होंने गम्भीर विषयों का प्रतिपादन किया है.
- विचारात्मक और विवेचनात्मक शैली:- शुक्लजी ने इस शैली में विचार-प्रधान निबन्धों की रचना की है।
- भावात्मक शैली:- इस शैली में शुक्लजी ने मनोवैज्ञानिक निबन्धों की सर्जना की है. इस शैली का शुक्लजी ने ही सर्वप्रथम प्रयोग किया है, इसलिए इन्हें इस शैली का जनक कहा जाता है.
- गवेषणात्मक शैली:- यह शैलो आलोचनात्मक शैली की अपेक्षा अधिक दुरूहता लिए हुए है. इस शैली में लेखक नवीन खोजपूर्ण विषयों पर निबन्धों की रचना की है.
- तुलनात्मक शैली:- शुक्लजी ने अपने निबन्धों में तुलनात्मक शैली का प्रयोग किया है. जब शुक्लजी एक मनोविकार का वर्णन करते हैं तो उसे और भी अधिक स्पष्ट करने के लिए दूसरे मनोविकार से उसकी तुलना करते हैं.
- व्यंग्यात्मक शैली:- शुक्लजी ने यत्र-तत्र अपने गम्भीर निबन्धों में हास्य विनोद का पुट प्रदान करने के लिए व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया है.
- समास या सूत्रात्मक शैली:- यह शैली शुक्ल जी की अपनी है. इस शैली में सर्वप्रथम वे अपनी विषयवस्तु को एक सूत्ररूप में प्रस्तुत करने के बाद उसकी व्याख्या करते हैं. इस शैली को दूसरे शब्दों में समास शैली भी कह सकते हैं. जैसे-‘बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है.”
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FAQ (आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय से जुड़े कुछ सवाल और उसके जवाब )
अब इस लेख में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर देखने वाले है. यह प्रश्न आपके ही द्वारा पूछा गया प्रश्न है जो की आपके सभी एग्जाम के लिए इम्पोर्टेंट है.
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय कैसे लिखा जाता है?
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का जीवन परिचय आपको कुछ पॉइंट को लिखना अति महत्वपूर्ण है. जैसे- जन्म स्थान व शिक्षा कहां से किया है. इनके माता-पिता का नाम व रचनाएँ क्या-क्या है और देहान्त इत्यादि चीजो को लिखना अति महत्वपूर्ण है.
रामचंद्र शुक्ल की रचनाएं क्या क्या है?
निबन्ध-संग्रह ‘चिन्तामणि’ (भाग 1 व 2) और ‘विचारatथी’ आलोचना-‘रसमीमांसा’ और “त्रिवेणी’ इतिहास- ‘हिन्दी-साहित्य का इतिहास’ सम्पादन- ‘जायसी प्रन्थावली’, ‘तुलसी ग्रन्थावली’, ‘भ्रमरगीत सार’ ‘आनन्द कादम्बिनी’ और ‘काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ खण्डकाव्य- ‘अभिमन्यु वध’ कहानी ‘ग्यारह वर्ष का समय
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का निबंध कौन कौन से हैं?
चिन्तामणि व विचारवीथी और (निबन्ध संग्रह), इत्यादि इनके निबन्ध है.
अचार रामचंद्र शुक्ल का जन्म कब और कहां हुआ था?
आचार्य रामचन्द्र जी का जन्म स्थान 1884 ई० को हुआ और इनका जन्म-स्थान है बस्ती जिला है. इनका देहांत सन 1941 ई० को हो गया था.
अंत में क्या पढ़ा
यह एक अच्छे लेखक व निबन्धकार थे और हमने आज “Acharya Ramchandra Shukla Ka Jeevan Parichay” को काफी अच्छे से समझा है.
इनकी शिक्षा मात्र हाईस्कूल (मिर्जापुर) से किया था. इन्हों ने महत्वपूर्ण रचनाएँ गागर में सागर और इत्यादि है. इन्होने एक स्कूल में अध्यापक भी रहे (चित्रकला के) और इनका देहान्त 1941 ई. को गया.
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