क्या आप भी ‘Mirabai Ka Jivan Parichay’ को गूगल पर खोज रहे है? तो इस लेख के अंत तक बने रहिये क्योंकि आपको मीराबाई का जीवन परिचय कक्षा 10 के बारे में सटीक जानकारी मिलेगी. आपको मीराबाई के बार में हर चीज की जानकरी देने वाला हु उनके साहित्य परिचय, रचनाये, भाषा – शैली इत्यादि के बारे में अच्छे से जानेंगे.
हम पहले Meerabai ka Jeevan Parichay in Hindi संक्षिप्त में टेबल के माध्यम से समझेंगे. यदि आप मेरे द्वारा बताये गए इस टेबल की जानकारी को अपने दिमाग में याद रख लेते है तो आप मीराबाई के जीवनी को बड़े आराम से लिख सकते है.
नाम | मीराबाई |
अन्य नाम | प्रेम दीवानी मीरा |
बचपन का नाम | पेमल |
पिता जी का नाम | राव रत्न सिंह |
मात जी का नाम | वीर कुमारी |
जन्म वर्ष | सन् 1498 ई ० |
जन्म स्थान | कुडकी (पाली) |
पति का नाम | राणा भोजराज सिंह |
दादाजी का नाम | राव जोध जी |
वंश | सिसोदिया (विवाह के बाद) |
प्रसिद्धी | कृष्ण भक्त. संत एवं गायिका के लिए |
काल | भक्तिकाल |
भाषा | ब्रजभाषा |
शैली | भावपूर्ण तथा मुक्तक |
प्रमुख रचनाये | नरसीजी का मायरा, गीत गोविन्द की टिका, मीराबाई की मल्हार आदि |
साहित्य में स्थान | कृष्ण भक्त कवियों में मीरा का स्थान विशिष्ट है, उन्हें भाव -तन्मयता के कारण प्रेम दीवानी मीरा कहा गया है |
मृत्यु वर्ष | सन् 1546 ई० |
मृत्यु स्थान | रणछोड़ मंदिर डाकोर, द्वारिका (गुजरात) |
प्रिय छात्रो आप लोगो ने उपर Mirabai Ka Jivan Parichay Hindi Mein एक छोटा सा टेबल के जरिये एक ओवर व्यू देने की कोशिश किया हमने. अब आगे हम लोग विस्तार से मीराबाई का जीवन परिचय NCERT eNotes के ब्लॉग राइटर से जानेंगे.
विस्तार से समझिये ‘Mirabai Ka Jivan Parichay’ के बारे में
प्रिय छात्रो Mirabai ka Jivan Parichay Class 10th के एग्जाम में ज्यादातर पूछे जाते है. इसिये अगर आप पढने वाले छात्र है तो इनके जीवनी को अच्छे से पढियेगा. मैं आपको पीडीऍफ़ भी प्रोवाइड करा दूंगा जिसके मदद से आप और अच्छे से पढ़ सकते है. तो चलिए अब हम लोग मीराबाई के जीवन परिचय के बारे में जानते है.
मीराबाई का जीवन परिचय: मीराबाई का जन्म 1498 ई. में पाली के कुड़की गाँव में हुआ था, जोकि दादा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर में हुआ था. कृष्ण भक्ति के प्रति उनके प्रारंभिक आकर्षण ने उनकी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत को चिह्नित किया. उनके पिता, रतन सिंह, उनके वंश के जोधपुर-संस्थापक राव जोधा के प्रत्यक्ष वंशज थे.
बचपन में अनाथ हो जाने के बाद मीराबाई को अपने दादा राव जोधा जी की देखरेख में सांत्वना मिली, जिन्होंने उन्हें प्राथमिक शिक्षा प्रदान की. राव दादाजी की गहरी धार्मिकता और खुले विचारों ने मीराबाई के दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित किया.
मीराबाई के विवाह ने उन्हें मेवाड़ के सिसौदिया राज परिवार से जोड़ दिया. उनका विवाह चित्तौड़गढ़ के महाराजा भोजराज से हुआ, जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे. दुःख की बात यह है कि शादी के कुछ समय बाद ही उनके पति का निधन हो गया. सती होने के सामाजिक दबाव के बावजूद, मीराबाई ने डटकर विरोध किया. उनकी अनुपस्थिति में चित्तौड़ में अंतिम संस्कार किया गया. वह भगवान कृष्ण को अपना शाश्वत जीवनसाथी मानकर श्रृंगार करने में लगी रही.
धीरे-धीरे सांसारिक मामलों से विमुख होकर वह संतों के साथ हरिकीर्तन में लीन हो गईं. पति के निधन के बाद उनकी भक्ति में वृद्धि हुई. मंदिर उसका आश्रय स्थल बन गए, जहां वह साथी भक्तों की उपस्थिति में कृष्ण की मूर्ति के सामने नृत्य करती थी. हालाँकि, उनकी आध्यात्मिक गतिविधियाँ राज परिवार की प्राथमिकताओं से टकरा गईं, जिन्होंने गीत और नृत्य के माध्यम से उनकी भक्ति को अस्वीकार कर दिया.
मीराबाई को अपने जीवन पर कई प्रयासों का सामना करना पड़ा, जिसमें उनके अपने परिवार द्वारा जहर देना भी शामिल था. उनकी शत्रुता से निराश होकर, उन्होंने द्वारका और वृन्दावन में शरण ली, जहाँ श्रद्धा ने हर कदम पर उनका साथ दिया.
बाबर के भारतीय आक्रमण और खानवा की लड़ाई के कारण राजनीतिक उथल-पुथल के दौर में, मीराबाई के रहस्यवाद और भक्ति के अनूठे मिश्रण को व्यापक स्वीकृति मिली. 1546 ई. में रणछोड़ मंदिर, डाकोर, द्वारका (गुजरात) में उनका निधन हो गया, और प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच आध्यात्मिक लचीलेपन की विरासत छोड़ गईं.
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Mirabai Ka Jivan Parichay PDF Free
प्रिय छात्रो मैं आपको अब Mirabai Ka Jivan Parichay PDF देने वाला हु वह भी बिलकुल फ्री में जिसमे आपको मीराबाई का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय के अलावा उनकी रचनाये भी देखने को मिलेगा. चलिए हम लोग मीराबाई का जीवन परिचय pdf का व्यूव देखते है जोकि निचे दिया गया है –
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मीराबाई का जन्म 1498 ईस्वी में हुआ था. उनके पिता का नाम रतन सिंह था और माता का नाम रुपा बाई था. उनका जन्मस्थान मेडता, राजपुताना (वर्तमान राजस्थान, भारत) था. मीराबाई के पति का नाम राणा कुंवर बीर सिंग था, जो मेवाड़ के राजा राणा सांगा का छोटा भाई थे. मीराबाई ने बचपन से ही भगवान कृष्ण के प्रति अपनी अत्यधिक प्रेम और भक्ति का प्रदर्शन किया.
मीराबाई की शिक्षा विद्या संस्कृत और विषयों में हुई थी, जो उसने अपने पिता के निर्देशन में पूरी की. उनकी भाषा शैली भगवान कृष्ण के प्रति उनकी अद्वितीय प्रेम और भक्ति को व्यक्त करती थी. उनके पद, भजन और आरतियाँ भक्ति और साधना की गहराईयों में गहराई तक पहुँचते थे. मीराबाई ने समाज में जाति और धर्म की परवाह किए बिना, अपने भक्ति के माध्यम से आत्मा को परमात्मा में लीन करने की महत्वपूर्णता को प्रमोट किया.
मीराबाई की मृत्यु का वर्ष और स्थान निश्चित रूप से नहीं ज्ञात है, लेकिन विशेषज्ञों की अनुमानना है कि वे करीब 1547 ईस्वी में अपने भक्ति में लीन हो गई थीं. मीराबाई के जीवन की यह कहानी एक भक्ति और साधना की उत्कृष्ट उदाहरण है, जो उनके पद, भजन और आरतियों के माध्यम से उनकी आत्मा की गहराइयों में लुबाती है.
मीराबाई का साहित्यिक परिचय
मीराबाई का बचपन से ही भगवान के प्रति अत्यधिक प्रेम था. उन्होंने छोटी उम्र से ही कृष्ण भगवान की भक्ति की शुरुआत की और उनकी कविताओं में यह प्रेम दिखता है. मीराबाई का विवाह राजपूताना के राजा से हुआ, लेकिन उनका सच्चा प्रेम उनके भगवान श्रीकृष्ण के प्रति था. वे राजा के साथ भी उनके पतिव्रता धर्म के पालन में कोई कमी नहीं किए लेकिन उनकी चित्रित भक्ति में ही उनका असली सुख मिलता था.
छोटी उम्र से ही मीराबाई का हृदय कृष्ण भक्ति से भर गया था. विद्या की गोपियों की तरह, उन्होंने अप्रतिरोध्य कोमलता के साथ कृष्ण की पूजा की. कृष्ण को अपने प्रिय जीवनसाथी के रूप में संदर्भित करते हुए, उन्होंने सभी अवरोधों को त्याग दिया, और कृष्ण के प्रेम के उत्साह में पूरी तरह से लीन हो गईं.
अपने पालन-पोषण के दौरान, उनका अधिकांश समय संतों और पूज्य आत्माओं के सत्संग के बीच व्यतीत होता था. नियमित रूप से, मीराबाई मंदिर जाती थीं, जहाँ वह अपने आराध्य देवता की मूर्ति के सामने आनंदपूर्वक नृत्य करती थीं. फिर भी, यह आचरण उदयपुर के राजघराने की प्रतिष्ठित मर्यादा के बिल्कुल विपरीत था, जिससे उनके परिवार के सदस्यों को गुस्सा आया.
मीराबाई ने अपने साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से अपने व्यक्तिगत और आध्यात्मिक अनुभवों को व्यक्त किया. उनकी कविताएँ भक्ति और प्रेम की अद्वितीय भावनाओं से भरी होती हैं. मीराबाई के साहित्यिक योगदान ने भारतीय साहित्य में अपनी विशेष पहचान बनाई. उनकी कविताएँ आज भी उनके भक्तों के द्वारा पढ़ी जाती हैं और उनकी आत्मा की गहरी खोज और भगवान के प्रति उनका अद्वितीय प्रेम लोगों को प्रेरित करता है.
मीराबाई की रचनाएँ अथवा कृतियाँ
मीरा जिन अभिव्यंजक पदों को गहन भाव से गाती और नृत्य करती थीं, वे उनकी कलात्मक अभिव्यक्ति के रूप में पहचाने गए. मीराबाई की प्रमुख रचनाये निम्न है –
- ‘नरसीजी का मायरा’
- ‘राग गोविंद’
- ‘राग सोरठ के पद’
- ‘गीत गोविंद की टीका’
- ‘मीराबाई की मल्हार’
- ‘राग विहाग’
- ‘फुटकर पद’
- ‘गर्व गीत’
मीरा की काव्य रचनाएँ और पद “मीराबाई की पदावली” शीर्षक के अंतर्गत संकलित किये गये हैं. इस संकलन में रुक्मणी मंगल, नरसीजी का मायरा, फुटकर पद, मीरा की गरबी, मलार राग, नरसिंह मेडता की हुंडी, सुधा-सिंधु, और बहुत कुछ जैसे महत्वपूर्ण खंड शामिल हैं.
मीराबाई की भाषा – शैली
प्रिय छात्रो हम लोग अब मीराबाई की भाषा एवं शैली के बारे में जानेंगे. हम लोग अब यह जानेंगे की मीराबाई अपने रचनाओ में किन भाषा का प्रयोग की थी. हम मीरा बाई के शैली को भी जानेंगे.
मीराबाई की काव्य भाषा
मीराबाई ने एक ऐसी भाषा का प्रयोग किया जिसकी विशेषता उसकी सरलता, संवेदनशीलता और भक्ति थी. अपने साहित्यिक कार्यों में, उन्होंने अपने प्रिय देवता, भगवान कृष्ण के प्रति अपनी अद्वितीय श्रद्धा और स्नेह को बखूबी व्यक्त किया. उनके शब्दों में आत्मा के अंतरतम तक पहुँचने की गहन क्षमता थी, जो कुशलता से उनके पाठकों के दिलों में ईश्वर के प्रेम के साथ गहरा संबंध स्थापित करती थी. उनकी भाषा में संगीत का सार, उच्च आकांक्षाओं का महत्व और आत्मा की आत्मनिरीक्षण यात्रा स्पष्ट रूप से प्रकट हुई.
मीराबाई की काव्य शैली
मीराबाई की काव्य शैली विशेषतः भक्ति और प्रेम के विषयों पर आधारित थी. उनकी रचनाएँ प्रेम और भक्ति के अद्भुत भावनाओं को व्यक्त करती थीं, जिनमें वे अपने ईश्वरीय प्रेम की गहराईयों में डूबती जाती थीं.
मीराबाई की काव्य शैली की एक विशेषता यह थी कि वे अपनी रचनाओं में भगवान के साथ अपने प्रेम की दृढ़ता और आत्म-समर्पण का संकेत देती थीं. उनकी कविताएँ अक्सर श्रृंगारिक रूप से भी लिखी जाती थीं, लेकिन उनके श्रृंगार का अर्थ आत्मा के और परमात्मा के मिलन की उत्कृष्टता में होता था.
मीराबाई की कविताओं में अधिकांशत: भक्ति, विरह, और संगीत के माध्यम से ईश्वरीय प्रेम का वर्णन होता है. उन्होंने भगवान को अपने प्रियतम सखा, प्रेमी या पति के रूप में देखा और उनके साथ आत्मीयता और प्रेम की भावना को अद्वितीय तरीके से व्यक्त किया.
उनकी कविताओं में सामाजिक और धार्मिक मुद्दों के प्रति उनकी आलोचनात्मक दृष्टिकोण भी उजागर होती है. वे उन समाजिक प्रथाओं और संविधानों का खुले मन से विरोध करती थीं जो महिलाओं को उनके आत्म-स्वाधीनता और आत्म-समर्पण में रुकावट डालते थे.
समान्य शैली में कहें तो, मीराबाई की काव्य शैली ने उनकी अद्वितीय भक्ति और प्रेम भावनाओं को एक सुंदर और आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया, जो आज भी लोगों के दिलों में बसी है.
मीराबाई के रचनाओ में भाव पक्ष एवं कला पक्ष
प्रिय छात्रो अब हम लोग मीराबाई का भाव पक्ष और कला पक्ष के बारे में जानेंगे. हम लोग पहले भाव पक्ष को समझेंगे फिर उसके बाद इनके कला पक्ष को जानेंगे.
मीराबाई का भाव पक्ष – Mirabai ka Bhav Paksh
मीराबाई की रचनाओं में उनके भाव पक्ष काव्य की महत्वपूर्ण विशेषता थी. उनके रचनात्मकता में भक्ति, प्रेम, विरह, और भाग्य के विभिन्न पहलुओं का संवेदनशील व्यक्तिगतीकरण था.
- भक्ति और प्रेम: मीराबाई की भक्ति और प्रेम की भावनाएं उनकी रचनाओं का मुख्य तत्त्व थीं. उनके काव्य में उनके ईश्वरीय प्रेम की अद्वितीयता और उनके उत्कृष्ट सामर्थ्य का चित्रण होता है. वे भगवान को अपने दिल के सबसे निकट और प्रियतम मानती थीं और उनकी कविताएँ इस प्रेम की अद्वितीय भावना को व्यक्त करती थीं.
- विरह के भाव: मीराबाई की कविताओं में विरह के दुखभरे भाव भी प्रमुख थे. उन्होंने अपने प्रेमी भगवान के विच्छेद के दुख को उपन्यासत्मक विवरण के साथ व्यक्त किया. इन भावनाओं में वे आत्मा के और परमात्मा के मिलन की अपार इच्छा को प्रकट करती थीं.
- आत्म-समर्पण: मीराबाई की कविताओं में आत्म-समर्पण की भावना भी महत्वपूर्ण थी. वे अपने प्रियतम भगवान के प्रति अपने आत्मा की पूर्ण समर्पण की भावना को व्यक्त करती थीं.
- भाग्य के प्रति विश्वास: मीराबाई की कविताओं में भाग्य के प्रति गहरा विश्वास था. उन्होंने भगवान की भक्ति के माध्यम से अपने जीवन की मार्गदर्शन की भावना को प्रकट किया और उन्होंने अपने भक्तों को भी भाग्य के प्रति आत्मविश्वासपूर्ण बनाने का संदेश दिया.
मीराबाई के भाव पक्ष में उनकी आत्मा की गहरी समर्पण भावना, उनके भगवान के प्रति अद्वितीय प्रेम और उनके आत्म-स्वाधीनता के सिद्धांत स्पष्ट रूप से प्रकट होते हैं.
मीराबाई का कला पक्ष बताइए – Mirabai Ka Kala Paksh
मीराबाई जी कला के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण आदर्श हैं. उनकी कला पक्ष कई प्रकार से उजागर होती है:
- भक्तिसंगीत: मीराबाई के भक्तिसंगीत उनके प्रेम और भक्ति के आदर्शों को सुनाते हैं. उनकी गायन की भावना और उनके भगवान के प्रति प्रेम का रंग उनके गीतों में दिखता है. उनके गानों में उनकी आत्मा की दिव्यता और भगवान के साथ उनके प्रेम की गहराई दिखती है.
- रंगमंच कला: मीराबाई का कला पक्ष रंगमंच कला में भी प्रकट होता है. उन्होंने अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण पलों को रंगमंच पर दिखाया. उनकी रचनाएँ रंगमंच के माध्यम से उनके प्रेम के भावनात्मक पहलुओं को दर्शाती हैं और उनकी कला के माध्यम से लोगों के दिलों में भक्ति और प्रेम की भावना को उत्तेजित करती हैं.
- शिल्पकला: मीराबाई के कुछ चित्र भी मौखिक रूप में उनकी कला पक्ष को प्रकट करते हैं. उन्होंने अपने चित्रों के माध्यम से अपने भक्ति और प्रेम की भावनाओं को व्यक्त किया.
मीराबाई की कला पक्ष उनके आदर्श और उनकी आत्मा की गहराई को प्रकट करता है, जिन्होंने उन्हें एक महान संत, कलाकार और आदर्श व्यक्तित्व में रूपांतरित किया.
अंत में हमने क्या जाना
प्रिय छात्रो आज हम लोगो ने बहुत ही सरल शब्दों में ‘Mirabai Ka Jivan Parichay’ को जाना है. हमने मीराबाई का जीवन परिचय का पीडीऍफ़ व्यूव भी देखा है. आपको अब कभी भी मीराबाई के जीवनी को कही और खोजने की जरूरत नही पड़ेगी.
मीराबाई ने
FAQs
प्रिय छात्रो अब हम लोग Mirabai Ka Jivan Parichay से सम्बंधित कुछ सवालो का जवाब को पढेंगे. इसमें मीराबाई के जीवनी से रिलेटेड सरे प्रश्नों को कवर किये गए है.
मीराबाई का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
मीराबाई का जन्म सन् 1498 ई० में मेडता, राजपुताना खानदान में हुआ था.
Mirabai ka Janm Kahan Hua tha
मीराबाई का जन्म 1498 ई. में पाली के कुड़की ग्राम में हुआ था.
क्या मीरा की शादी कृष्ण से हुई थी?
मीराबाई ने बचपन से कृष्ण की भक्ति की थी और कृष्ण को ही अपना पति मानती थी, लेकिन बाद में इन्होने अपने घर वालो के आग्रह करने पे राणा भोजराज सिंह से कर ली थी.
मीराबाई की रचनाएं क्या है?
मीराबाई की रचनाये ‘नरसीजी का मायरा’, ‘गीत गोविन्द की टिका’, ‘मीराबाई की मल्हार’ आदि है.
मीराबाई का बचपन का नाम क्या है
मीराबाई का बचपन का नाम ‘पेमल’ था और बचपन से ही कृष्ण की भक्ति में मगन थी.
मीराबाई का साहित्यिक परिचय
मीराबाई, 16वीं शताब्दी की महान भक्ति कविनी थीं. वे राजपूतानी राजा राणा कुंभा की रानी थीं, लेकिन उन्होंने सांसारिक बंधनों को छोड़कर भगवान के प्रति अपनी अद्वितीय भक्ति का प्रगट किया. उनके पद और भजन भक्ति और प्रेम का प्रतिष्ठान करते हैं, जिनमें वे कृष्ण की उपासना करती थीं. उनकी रचनाएँ राग-ताल के साथ गायी जाती हैं और उनकी उपासना का अद्वितीय भाव व्यक्तिगतता से भरपूर होता है. उनका साहित्य भारतीय साहित्य में अमूल्य धरोहर माना जाता है, जिसने समाज में भक्ति और साधना की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
मीरा बाई की मृत्यु कैसे हुई
मीराबाई की मृत्यु का वर्ष और स्थान निश्चित रूप से नहीं ज्ञात है, लेकिन विद्वानों का कहना है कि मीराबाई करीब 1547 ईस्वी के आस – पास मृत्यु हुई.
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