आज हम Sant Ravidas Ka Jivan Parichay के उपर चर्चा करने वाले है. यदि आपको भी गुरु संत रविदास का जीवन परिचय के बारे में जानना है तो इस लेलख को अंत तक पढ़िए.
संत रविदास को कई नामो से जाना जाता है जिसके बारे में हम आगे जानेंगे भी. संत रविदास के बारे में कक्षा 9th के बच्चे google पर ‘Raidas Ka Jivan Parichay Class 9’ के नाम से भी सर्च करते है जिसके बारे में हम आपको पीडीऍफ़ के जरिये बताने वाले है.
संत रविदास जी एक महान भारतीय कवि रहे है इनके जन्म पे रविदास जयंती भी मनाई जाती है. गुरु रविदास जी ने अनेको परिश्रम एवं महान कार्यो को सफल किया है.
इसलिए इनको आज देश भर में करोडो लोग पूजते है. आज हमलोग संत रविदास की जीवन परिचय PDF, साहित्यिक परिचय, रचनाये, रविदास जी का इतिहास pdf, मृत्यु कैसे हुई, janm kab hua tha, गोत्र क्या है? आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे.
संक्षिप्त में Sant Ravidas Ka Jivan Parichay in Hindi
प्रिय छात्रो हम लोग पहले “sant ravidas ji ka jivan parichay” क संक्षिप्त में एक टेबल के माध्यम से जानेंगे फिर उसके बाद आगे चल करके हम लोग विस्तार से संत रविदास का जीवन परिचय को पढेंगे.
पूरा नाम | संत शिरोमणि सतगुरु श्री संत रविदास जी महाराज |
अन्य नाम | रैदास, रवि, संत रविदास, |
जन्म वर्ष | सन् 1377 ई० |
जन्म स्थान | वाराणसी जिले के अंतर्गत गोवर्धनपुर में |
पिता जी का नाम | संतोख दास जी |
माता जी का नाम | कलसा देवी जी |
दादा जी का नाम | कालूराम दास |
दादी जी का नाम | लखपति देवी जी |
जीवन साथी | लोना देवी जी |
पुत्र का नाम | विजय दास जी |
गुरु जी का नाम | स्वामी रामानन्द जी |
उपाधि | संत शिरोमणि सत गुरु |
पेशा | संत, कवि |
काल | भक्तिकाल |
भाषा | अवधि तथा ब्रजभाषा |
शैली | सरल, मधुर एवं प्रतीकात्मक चिह्नित शैली |
रविदास जयंती | माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है |
प्रमुख रचनाये | रैदास की वाणी, संत रैदास काव्य, भागवत प्रेम, अनन्यता एवं सरल हृदय आदि. |
प्रसिद्धी का कारण | सतगुरु के रूप में सम्मानित हुए एवं गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल भजन तथा मीराबाई के गुरु और कबीर दास से मिलन |
मृत्यु वर्ष | सन् 1528 ई० में |
मृत्यु स्थान | उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में |
प्रिय छात्रो आप लोग उपर एक टेबल के जरिये Sant Ravidas Ka Jivan Parichay in Hindi में समझ सकते है. मैंने गुरु रविदास का जीवन परिचय आपको संक्षिप्त में समझा दिया है अब हम लोग आगे विस्तार से इसी का वर्णन करेंगे, जोकि सबसे सरल शब्दों में होगा.
विस्तार से जानिए ‘संत रैदास का जीवन परिचय’ – Sant Ravidas Jivan Parichay
गुरु संत रविदास (रैदास) जी 15 वीं शताब्दी के एक महान संत, दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक थे. उन्हें संत शिरोमणि सत गुरु की उपाधि भी प्राप्त है.
गुरु रविदास जी मध्यकाल में एक प्रतिष्ठित भारतीय संत थे, जो अपने दार्शनिक विचारों, कविताओं, और समाज सुधारकीय क्रियाओं के लिए प्रसिद्ध थे.
संत रविदास जी का जन्म वर्ष और स्थान
संत रविदास जी का जन्म सन् 1377 ई० में वाराणसी जिले के अंतर्गत गोवर्धनपुर गाँव में हुआ था. संत रविदास जी के जन्म वर्ष पे कई विद्वानों का मतभेद भी है.
कुछ विद्वानों का ऐसा कहना भी है की संत रविदास जी का जन्म सन् 1398 ई० में हुआ है. इनके जन्म के उपलक्ष्य में ही भारत में हर माघ पूर्णिमा के दिन ‘संत रविदास जयंती’ भी मनाई जाती है.
संत रविदास का अन्य नाम
संत रविदास जी का अन्य कई उपनाम भी है. गुरु रविदास जी ‘रैदास’ के नाम से काफी ज्यादा प्रचलित है. इसके साथ ही रविदास जी का बचपन का नाम ‘रवि’ था. संत रविदास का कुछ अन्य और नाम ‘रूहिदास’, ‘रोहिदास’, ‘रायिदास’ आदि भी है.
संत रविदास के माता पिता का नाम
संत रविदास जी के माता का नाम कलसा देवी जी था और पिता का नाम संतोख दास जी था. संत रविदास जी के माता-पिता का नाम उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा था.
उनकी माता का नाम कलसा देवी था, जो कि उनके जीवन की आध्यात्मिक और सामाजिक शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी.
संत रविदास जी के पिता का नाम संतोख दास था, जो चमड़ा बनाने और सुधारने के काम में लगे रहते थे. संत रविदास जी के पिता का काम उनके संदेश को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था, और उनका परिवार उनके जीवन के आदर्शों को प्रमोट करने में मदद करता था.
इनके माता-पिता का साथी अपने अद्वितीय योगदान के लिए समर्पित रहा और उनके संदेश को बढ़ावा देने में मदद की.
संत रविदास जी के दादा – दादी जी
संत रविदास जी के दादा जी क नाम ‘कालू राम’ और दादी जी का नाम ‘लखपति’ था. इन्होंने रविदास जी को बचपन से प्रेम और आध्यात्मिक शिक्षा दी. उनका साथी संगठन और उनके आदर्शों का पालन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
उनका परिवार संत रविदास जी के जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से का हिस्सा था, और उनके संदेश को समझने और फैलाने में मदद करता था. उनके परिवार का साथ और समर्पण संत रविदास जी के महान कार्यों को संगत करता है.
संत रविदास जी का वैवाहिक जीवन
संत रविदास जी की पत्नी का नाम ‘श्रीमती लोना देवी’ था. इनकी पत्नी इनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा थीं. विवाह के बाद इन्हें सन्तान की प्राप्ति भी हुई. संत रविदास जी के बेटे का नाम विजय दास था.
उनका साथ, संत रविदास जी ने सामाजिक और आध्यात्मिक कार्यों में साथी और समर्पिति का परिचय किया. उनका वैवाहिक जीवन भी उनके सामाजिक सुधार के प्रेरणास्त्रोत बने, और वे साथ मिलकर अपने संदेश को लोगों तक पहुंचाने में कामयाब रहे.
इनके साथ का संबंध उनके महान कार्यों को और भी महत्वपूर्ण बनाता है, और उनकी साझेदारी ने उनके संदेश को पूरी दुनिया में प्रसारित किया.
संत रविदास जी की शिक्षा
संत रविदास जी के शिक्षा का सफर उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा था. वे बचपन से ही बुद्धिमान और भगवान के प्रति अपनी विशेष स्नेहभावना रखते थे.
प्रारंभ में, उन्होंने अपने गुरु रामानन्दनन्द की पाठशाला में पठन किया, लेकिन उच्च वर्ग के छात्रों ने उनके पाठशाला में आने का विरोध किया.
हालांकि उनके गुरु ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अपनी शिक्षा का हिस्सा बनाया. बाद में, उन्होंने अपनी शिक्षा के साथ ही समाज को धार्मिक और मानवता के महत्वपूर्ण सिख दिलाई.
जिस पाठशाला में संत रविदास जी पढ़ते थे उसी पाठशाला में इनके गुरु का लड़का भी पढता था और दोनों आगे चल करके परम मित्र भी बन गए थे.
एक दिन दोनों बहार खेलने गए और खेलते – खेलते इन दोनों को काफी रात हो जाती है और ये दोनों अपने अपने घर चले जाते है और फैसला करते है की अगले दिन वापस खेलेंगे.
परन्तु अगले दिन संत रविदास जी जब खेलने जाते है तो इनके मित्र वह नही रहते है, फिर जब ये घर जाते है तो पता चलता है की इनकी मित्र की मृत्यु हो गयी है, ये जानकार इन्हें बहुत दुःख होता है.
इनके गुरु अपने बेटे अर्थात इनके मृत मित्र के पास ले जाते है और संत रविदास जी अपने मित्र के कान में धीरे से बोलते है की ‘ये सोने का समय नही है चलो उठो’ फिर इनका मित्र अचानक से खड़ा हो जाता है. ऐसा माना जाता है की संत रविदास जी को बचपन से ही दिव्य अलौकिक शक्तिया प्राप्त थी.
संत रविदास जी के गुरु
संत रविदास जी के गुरु का नाम ‘रमानन्द’ था. संत रविदास जी के गुरु, रमानन्द, एक प्रमुख संत और आध्यात्मिक गुरु थे.
उन्होंने रविदास जी को उच्च जातिवाद के खिलाफ उनकी शिक्षा दी और उन्हें आध्यात्मिक जीवन की ओर मार्गदर्शन किया. उनके मार्गदर्शन से रविदास जी ने समाज में सुधार के माध्यम को चुना.
आपको इन्टरनेट पे बहुत सारे ऐसे लेख भी मिल जायेंगे जो ये दवा करते है की इनके गुरु शारदानंद थे परन्तु ये असत्य है. मैंने आपको जो जानकरी डी है वह मैंने काफी सर्च करने के बाद अपने ज्ञान के अनुसार दि है.
संत कबीर दास और संत रविदास जी के गुरु एक ही थे. हम ऐसा भी कह सकते है ये दोनों एक ही समय के महान कवि थे और एक ही गुरु से शिक्षा प्राप्त की थी.
संत रविदास जी का मृत्यु वर्ष एवं स्थान
संत रविदास जी के जीवन के अंत की सटीक तिथि के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है. उनका मृत्यु वर्ष विवादित है, लेकिन ऐसा माना जाता है विद्वानों के अनुसार की उनका निधन 16वीं सदी के आस-पास हुआ था.
उनकी मृत्यु का स्थान भी विभिन्न स्थलों पर मान्यता प्राप्त है, जैसे कि वाराणसी और उत्तर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में.
संत रविदास जी का जीवन और उनके दिये गए संदेशों का महत्व उनकी मृत्यु के बाद भी बना रहा और वे आज भी महान संत के रूप में स्मरण किए जाते हैं. विद्वानों के अनुसार हम लोग संत रविदास जी की मृत्यु सन् 1528 ई० में उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में मान सकते है.
Raidas Ka Jivan Parichay Class 9 PDF
प्रिय छात्रो अब हम लोग रैदास जिसे संत रविदास भी कहा जाता है. रैदास संत रविदास जी का उपनाम है और हम लोग अब Raidas Ka Jivan Parichay Class 9 के बारे में जानेंगे. मैं आपको एक पीडीऍफ़ फाइल दूंगा जिसमे काफी सरल शब्दों में रैदास का जीवन परिचय लिखा हिगा.
File Name | Raidas Ka Jivan Parichay Class 9 PDF |
File Size | 654 KB |
No of Pages | 09 |
Quality | High |
Price | Free |
आप लोग इस पीडीऍफ़ के मदद से Sant Ravidas Ka Jivan Parichay को काफी आसानी से बिना इन्टरनेट के भी पढ़ सकते है.
इसके लिए आपको एक पीडीऍफ़ फाइल दिख रहा होगा उसे अपने मोबाइल में सेव करना है. आपको इस पीडीऍफ़ फाइल में रैदास का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय एवं रैदास की रचनाये भी मिल जाएँगी.
इस पीडीऍफ़ में आपको raidas ji ka jeevan parichay in hindi के बारे में सम्पूर्ण जानकरी मिलेगी. कक्षा 9th में ये बहुत ही ज्यादा पूछा जाता है इसके अलवा रैदास Class 10th, 11th, 12th में भी कभी कभी पूछ लिए जाते है. रैदास के अनमोल वचन एवं दोहे भी काफी प्रचलित है.
इस पीडीऍफ़ की आवश्यकता कक्षा 9th में पढ़ रहे लोगो के लिए है जो “Raidas Ka Jivan Parichay In Hindi” के बारे में जानना चाहते है.
इस पीडीऍफ़ में उन्हें रैदास के जीवन से जुड़े सभी टॉपिक्स मिलेंगे जैसे – जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाये साहित्य में योगदान , भाषा शैली आदि.
संत रविदास का साहित्यिक परिचय
संत रविदास का साहित्य भारतीय साहित्य के भक्ति काव्य की महत्वपूर्ण धारा में आता है और उनकी रचनाएँ हिन्दी और पंजाबी साहित्य के अनमोल भाग हैं.
वे भगवान के प्रति अपने गहरे भक्तिभाव से जुड़े रहे और उनके लेखन में यह भक्ति और आध्यात्मिकता की भावना प्रमुख है.
संत रविदास जी की कविताएं और दोहे सामाजिक न्याय, मानवता, और भगवान के प्रति प्रेम के विचारों को सुनहरे शब्दों में प्रकट करते हैं. उन्होंने जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ खुलकर बोला और समाज में समानता की ओर प्रोत्साहित किया.
उनकी कविताएं और दोहे आज भी भक्ति मार्ग के अनुयायियों के बीच बहुत प्रसिद्ध हैं और उनका साहित्य समाज में सामाजिक सुधार और एकता के लिए महत्वपूर्ण है.
रविदास जी की रचनाएँ पंजाबी, अवधी, ब्रजभाषा और हिन्दी भाषाओं में हैं, और उनके काव्य में भगवान के प्रति उनके गहरे भक्तिभाव, मानवता के महत्व, और समाज में समानता की प्रमुख भावनाओं का प्रतिष्ठान है.
उनके साहित्य का सन्देश आज भी लोगों को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है और समाज में समानता और न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान है.
संत रैदास (रविदास) की प्रमुख रचनाएं
संत रैदास जी की प्रमुख रचनाये ‘सरल ह्रदय’, अनन्यता’, ‘देनय’, ‘भागवत प्रेम’, ‘रैदास की वाणी’, ‘आत्मवेदन’ आदि है. इसके अलवा इन्होने अपने बहुत सी वाणी को ‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ में प्रकाशित किया है.
संत रैदास जी की रचनाएँ उनके आदर्शपूर्ण और भक्तिपूर्ण लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं. उनके दोहे और पद कविताओं का मूल उद्देश्य भगवान की भक्ति और मानवता की सेवा है. यहां कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं:
- गुरु ग्रंथ साहिब: संत रैदास जी के दोहों और पदों का संकलन “गुरु ग्रंथ साहिब” में मिलता है. इसमें उनकी भक्ति और आध्यात्मिक दृष्टिकोण को प्रकट किया गया है.
- अनन्यता: यह काव्यरचना संत रैदास जी के भक्तिपूर्ण विचारों को उजागर करती है और उनके आत्मविश्वास को दर्शाती है.
- भागवत-प्रेम: इस रचना में उन्होंने अपने भगवान के प्रति अपने गहरे प्रेम को व्यक्त किया है और उनकी भक्ति का महत्व बताया है.
- देनय: संत रैदास जी ने यहां पर जीवन के साथी के साथ उनकी देनय के संबंध को दर्शाया है और भगवान के साथ अपनी अनन्य प्रेम और आत्मविश्वास का महत्व बताया है.
- सरल हृदय: संत रैदास जी की रचनाएँ सरलता और सहजता के साथ लिखी गई हैं, जिससे आम लोगों तक उनके संदेश का पहुँचान आसान होता है.
- रैदास की वाणी: इस ग्रन्थ में रैदास जी ने भगवान के प्रति अपनी अद्वितीय प्रेम और आत्मवेदन को व्यक्त किया है.
- आत्मवेदन: रैदास जी की आत्मवेदना उनके ग्रन्थों में प्रमुख है, जिसमें वे अपने आप को भगवान के साथ एक मानते हैं.
इन रचनाओं में संत रैदास जी ने भक्ति, आध्यात्मिकता, और मानवता के महत्व को बड़े ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया और उनके लेखन समाज को सच्चे मानवधर्म की ओर प्रेरित करता है.
रैदास की भाषा – शैली
रैदास की भाषा अवधी एवं ब्रजभाषा थी. उन्होंने अपनी रचनाओ में अवधि एव ब्रजभाषा का प्रयोग किया है. रविदास जी की काव्य शैली मधुर, कोमल एवं प्रतीकात्मक चिह्नित शैली थी. संत रैदास जी की भाषा शैली उनके काव्य में अद्वितीय थी.
उन्होंने साधारण भाषा का प्रयोग करते हुए आध्यात्मिक और धार्मिक सन्देशों को सुन्दरता से प्रकट किया.
- भाषा का सरलता: रैदास जी की भाषा सरल और सामान्य जनता को समझने में आसान थी. उन्होंने गहरे विचारों को सरल शब्दों में प्रकट किया और इसके बावजूद उनके काव्य का गहरापन और मानवीयता से भरपूर होता था.
- भावनाओं का अभिव्यक्ति: रैदास जी के काव्य में भावनाओं का अभिव्यक्ति करने का विशेष महत्व था. उन्होंने अपने भक्तिभावों, प्रेम, और आत्मवेदना को शब्दों के माध्यम से दर्शाया और पाठकों के दिल में संवाद का अंश डाला.
- उपमानों और उपमितियों का प्रयोग: रैदास जी ने उपमानों और उपमितियों का विस्तार से प्रयोग किया था, जिससे उनके काव्य को रूप, रस, और भावनाओं के साथ रिच किया जा सकता है.
- सुंदर छंद: उनके काव्य में सुंदर छंदों का प्रयोग किया गया था, जिससे उनके शब्दों का उच्चारण आसानी से हो सकता था और यह उनके संदेश को भी और अधिक आकर्षक बनाता था.
- आध्यात्मिक भावनाओं का प्रयोग: रैदास जी की भाषा शैली आध्यात्मिक भावनाओं को प्रकट करने में मदद करती थी. उन्होंने अपने काव्य में भगवान के प्रति अपनी अद्वितीय प्रेम और समर्पण की भावना को बयां किया.
रैदास जी की भाषा शैली ने उनके संदेशों को सुंदरता और सरलता के साथ प्रस्तुत किया, जिसका अधिकारी और गरीब, जाति और धर्म के भेद को पार करने में मदद करता था.
संत रविदास जी का इतिहास PDF
संत रविदास जी, भारतीय इतिहास और धार्मिक साहित्य के महान संतों में से एक थे. उनका जन्म 15वीं सदी के अंत में हुआ था, और वे काशी (वराणसी) में पैदा हुए थे. रविदास जी का जीवन उनकी भक्ति और सामाजिक सुधार के कार्यों से प्रमुख था.
रविदास जी का जीवन समाज में जातिवाद के खिलाफ उठे और सभी मानवों को समानता और प्यार की ओर प्रोत्साहित किये बिना ही महान हुआ.
उन्होंने अपनी कविताओं और दोहों के माध्यम से भगवान की भक्ति का संदेश दिया और जातिवाद के खिलाफ उत्कृष्ट प्रतिक्रियाएँ दीं.
उनकी कविताएँ सभी वर्णों के लोगों के लिए समझी जाती हैं और वे एक सशक्त सामाजिक संगठन के प्रेरणास्त्रोत रहे हैं.
रविदास जी का संदेश सामाजिक और आध्यात्मिक समृद्धि के साथ-साथ मानवता की महत्वपूर्ण मूल्यों को भी स्थापित करता है. उनका योगदान आज भी समाज में महत्वपूर्ण है और उन्हें भारतीय साहित्य और संत साहित्य का महान सम्राट माना जाता है.
वे एक महान धार्मिक और सामाजिक नेता थे जिन्होंने समाज को सशक्त और समृद्धि दिलाने के लिए अपना जीवन समर्पित किया.
संत रविदास जी का जीवन एक प्रेरणास्त्रोत है जो हमें समाज में समानता, मानवता, और धार्मिकता की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ देता है.
उनकी कविताएँ और भक्ति काव्य समाज में सभी वर्णों और जातियों के लोगों के बीच एकता और भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करते हैं.
उन्होंने जातिवाद, उच्च-निच की भावना, और भेदभाव के खिलाफ खुलकर विरोध किया और सभी को समान अधिकारों की ओर प्रोत्साहित किया.
रविदास जी का जीवन और काव्य व्यक्ति के आध्यात्मिक सफलता और सामाजिक सुधार के सशक्त उदाहरण के रूप में उभरे हैं.
उनकी भक्ति और आदर्शों को सुशासन और न्याय की प्रतीक माना जाता है, और उनके काव्य में दिखाई देने वाली मानवता और सद्गुणों की चमक आज भी हमारे जीवन में अपना महत्व साबित करती है.
संत रविदास जी के योगदान के कारण वे आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं और उन्हें संत और समाज सुधारक के रूप में सम्मानित किया जाता है.
उनके शिक्षाएँ हमें समाज को समृद्धि और सामाजिक न्याय की ओर अग्रसर करने का मार्ग दिखाती हैं.
संत रविदास जी का मीराबाई एवं कबीर दास से मिलन
संत रविदास जी और मीराबाई, दोनों ही महान भक्त थे और उनका मिलन आध्यात्मिक संदेश को फैलाने में महत्वपूर्ण रोल रहा है.
यह मिलन अपने समय में हुआ था जब मीराबाई गोपियों के साथ श्रीकृष्ण की प्रेम भक्ति में लीन रह रही थी और संत रविदास जी के आध्यात्मिक गुरु थे.
उनका मिलन सामाजिक और आध्यात्मिक मानवता के सिद्धांतों को बढ़ावा देने में मददगार रहा और उनके भजनों और काव्य के माध्यम से भक्ति और प्रेम की महत्वपूर्ण उपदेश दिया.
संत रविदास जी और संत कबीर दास की मित्रता गहन और साहसी थी. वे दोनों महान भक्ति संत थे और सामाजिक असमानता के खिलाफ उठे.
उन्होंने एक साथ काम किया और आध्यात्मिक उपदेश दिया, जिसमें समाज में सभी व्यक्तियों के समान अधिकार की महत्वपूर्ण भूमिका थी.
उनका मिलन भारतीय साहित्य और भक्ति आंदोलन के इतिहास में महत्वपूर्ण है और उनके काव्य और भजन आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं.
संत रविदास और मुगल शासक बाबर से मिलन
संत रविदास और मुग़ल शासक बाबर के बीच एक महत्वपूर्ण घटना हुई थी जो भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है. बाबर, मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक और पानीपत की प्रसिद्ध लड़ाई के विजेता थे.
उन्होंने 1526 में दिल्ली के सल्तनत को बदल दिया और मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी. बाबर के समय, संत रविदास जी भारतीय समाज में अपने आद्यात्मिक ज्ञान और सामाजिक सुधार के लिए प्रसिद्ध थे.
बाबर ने उनके आध्यात्मिक गुणों के बारे में सुना और उनसे मिलने की इच्छा की. इसके परिणामस्वरूप, बाबर गुरु रविदास जी के पास गए और उनके पैरों को छूते हुए उन्हें सम्मान दिया.
हालांकि, इस मिलनसर क्षण के बाद, जब बाबर ने अपने किए गए दुष्कर्मों के बारे में बताया, तो संत रविदास जी ने उन्हें दंडित किया और उन्हें अपने आदर्शों की पालन करने के लिए समझाया.
इसके परिणामस्वरूप, बाबर ने अच्छे कार्य करने का निर्णय लिया और समाज में सुधार का साथ दिया.
इस घटना ने दिखाया कि आध्यात्मिक गुरु जी ने न केवल अपने अनुयाई के आध्यात्मिक विकास में मदद की, बल्कि उन्होंने समाज के उन्नति और सुधार के माध्यम से भी उन्हें मार्गदर्शन प्रदान किया.
संत रविदास जी का समाज सुधारक कार्य
संत रविदास जी का समाज सुधारक कार्य उनके जीवन और उपदेशों के माध्यम से विभिन्न दिशाओं में था.
- छुआछूत के खिलाफ: रविदास जी ने छुआछूत के खिलाफ उठकर समाज में समानता की बजाय किए. उन्होंने लोगों को बताया कि हर व्यक्ति का मूल रूप से दरमियाना एक है और धर्म या जाति के आधार पर उन्हें जज नही किया जाना चाहिए.
- धार्मिक उपदेश: रविदास जी ने धार्मिक उपदेश के माध्यम से लोगों को ईश्वर के प्रति प्रेम की सच्ची भावना और कर्मों के महत्व को सिखाया. उन्होंने लोगों को यह सिखाया कि धर्म जाति या रंग के आधार पर नहीं, बल्कि कर्मों के माध्यम से पहचाना जाता है.
- सामाजिक भाईचारा: रविदास जी ने सामाजिक भाईचारे और सहिष्णुता की महत्वपूर्ण भूमिका बताई और लोगों को एक साथ आने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने समाज में सभी को समान अधिकार दिलाने के लिए उत्साहित किया और छुआछूत जैसे भेदभाव को खत्म करने के लिए प्रयास किया.
- ग्रंथ साहिब में योगदान: रविदास जी ने अपने उपदेशों और काव्य को ग्रंथ साहिब में शामिल किया, जिससे उनके संदेश और आदर्शों का विस्तार हुआ. उनके लिखे गए पद, धार्मिक गाने और रचनाएँ आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं और उनके उपदेशों का पालन किया जाता है.
संत रविदास जी के समाज सुधारक कार्य ने भारतीय समाज में सामाजिक और धार्मिक रूप से सुधार की मार्गदर्शन की और उनके उपदेश आज भी समाज में महत्वपूर्ण हैं.
संत रविदास जी का स्वभाव
संत रविदास जी का स्वभाव अत्यंत विनम्र और भगवान के प्रति श्रद्धालु था. उन्होंने जातिवाद और जातिभेद के खिलाफ थोड़ी सी भी जटिलता नहीं रखी थी.
उन्हें सभी मानवों को एक समान रूप से देखने का दृष्टिकोण था और वे अपने जीवन में इसे अमल में लाते थे. उन्होंने आपसी समरसता, सहानुभूति और विश्वास की भावना को महत्वपूर्ण माना था. उनका स्वभाव धीर, ध्यानी, और परम भक्त बनाता था.
वे अपने शिष्यों के साथ उदार और मार्गदर्शक रहते थे. उनके उपदेशों में व्यक्त होता था कि भगवान का भगत होना उसकी जाति, वर्ण या सामाजिक स्थिति से नहीं बल्कि भक्ति और सेवा में स्थिति के आधार पर है. वे सभी को आत्म-समर्पण और ईश्वर के प्रति विश्वास की महत्वपूर्णता की शिक्षा देते थे.
रविदास जी का स्वभाव सादगी, उत्साही और स्नेहपूर्ण था, जो उन्हें लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान दिलाता था.
संत रविदास जी के लिए समर्पित स्मारक
- श्री गुरु रविदास पार्क, वाराणसी: वाराणसी में श्री गुरु रविदास पार्क है, जिसे नागवा क्षेत्र में उनके नाम पर एक स्मारक के रूप में बनाया गया है, जिसे स्पष्ट रूप से “गुरु रविदास स्मारक और पार्क” भी कहा जाता है.
- गुरु रविदास घाट: भारत सरकार द्वारा गंगा नदी के तट पर वाराणसी के पार्क से सटे गुरु रविदास घाट को उनके नाम पर लागू करने का प्रस्ताव दिया गया है.
- संत रविदास नगर: एक संत रविदास नगर (पूर्वनाम भदोही) है, जो उनके नाम पर ज्ञानपुर के पास संत रविदास नगर जिले में स्थापित किया गया है.
- श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर, वाराणसी: सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी में स्थित श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर है, जो उनके सम्मान में बनाया गया है. यहाँ पर उनके अनुयायियों द्वारा चलाया जाने वाला प्रमुख धार्मिक मुख्यालय भी स्थित है.
- श्री गुरु रविदास मेमोरियल गेट: लंका चौराहा पर स्थित एक बड़ा द्वार है, जिसे वाराणसी में “श्री गुरु रविदास मेमोरियल गेट” नामके स्मारक के रूप में बनाया गया है.
- अन्य स्मारक: संत गुरु रविदास जी के नाम पर कई अन्य स्मारक भारत के विभिन्न हिस्सों में और विदेशों में भी स्थित हैं, जो उनके आदर्शों और योगदान को स्मृति में रखने के लिए बनाए गए हैं.
संत रविदास जयंती क्यों मनाई जाती है?
संत रविदास जयंती मनाई जाती है क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो संत रविदास जी की जयंती के रूप में मनाया जाता है.
इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य संत रविदास जी के जीवन, उनके दार्शनिक और आध्यात्मिक विचारों को समर्थन और सम्मान देना है.
संत रविदास जी ने अपने जीवन में सामाजिक और धार्मिक बदलाव के लिए संघर्ष किया और उन्होंने जाति और वर्ण के भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई.
उन्होंने भक्ति आंदोलन के माध्यम से समाज में सामाजिक और धार्मिक समानता की बजाय लाए और भगवान के प्रति अपनी अद्वितीय प्रेम और समर्पण का प्रतीक दिखाया.
रविदास जयंती के दिन, भक्त लोग संत रविदास जी के उपदेशों को याद करते हैं, उनकी भक्ति कविताएँ पढ़ते हैं, भजन गाते हैं, और सामाजिक कार्यों में भाग लेते हैं.
यह एक अवसर होता है संत रविदास जी के योगदान को याद करने और उनके आदर्शों का पालन करने का. इसके साथ ही, यह त्योहार समाज में एकता, समरसता, और सामाजिक न्याय के महत्व को प्रमोट करता है.
संत रविदास और गंगा जी की कहानी
संत रविदास और गंगा जी के बीच कई महत्वपूर्ण कथाएं हैं. एक प्रमुख कथा निम्नलिखित है:
कथा के अनुसार, संत रविदास जी गंगा नदी के किनारे बैठे थे और ध्यान में लिपटे थे. वे गंगा की पवित्रता को मानते थे और उनकी आत्मा गंगा के साथ एकात्मिता में बसी रहती थी.
एक दिन, गंगा जी ने अपने जल का स्त्रोत बढ़ा दिया और उनके बैठे हुए स्थान को डूबने के खतरे से दिलाया.
संत रविदास जी ने इसके परिणामस्वरूप अपने आसपास के कुचले जूतों को उठाकर बचाने का प्रयास किया, लेकिन वे जूते उठने में असफल रहे.
इसके बाद, संत रविदास जी ने अपने आध्यात्मिक शक्तियों का सहारा लिया और गंगा जी से प्रार्थना की कि वह उनकी जूतों को ऊपर उठा लें ताकि वे अपने ध्यान को बिना विघ्न के जारी रख सकें.
गंगा जी ने उनकी प्रार्थना को सुना और वे चमकते हुए जूते उठा लिए. इसके बाद, संत रविदास जी ने आभार और भक्ति से गंगा जी की पूजा की और उनके जीवन को धर्म और सेवा में समर्पित किया.
इस कथा से समझा जा सकता है कि संत रविदास जी का आध्यात्मिक जीवन और उनका गंगा जी के प्रति गहरा आदर था. यह कथा उनकी भक्ति और समाज में सेवा के प्रति उनके समर्पण को प्रकट करती है.
संत रविदास जी के अनमोल वचन
संत रविदास जी के अनमोल वचन भक्ति, सेवा, और सामाजिक समर्पण के प्रति उनके दृढ आदर्शों को प्रकट करते हैं.
यहाँ संत रविदास जी के कुछ अनमोल वचन हैं:
- “जो कुछ है, सो तुम्हारे पास है, जो नहीं है, वह कहाँ गया?”
- “जो व्यक्ति ईश्वर के भक्त बन जाता है, उसे जन्म-मरण का डर नहीं होता.”
- “एक अच्छे विचार और नीति से मनुष्य का ज्ञान और बुद्धि बढ़ता है.”
- “जब तक इन्सान के अंदर भगवान की शक्ति नहीं जागृत होती, तब तक उसे भगवान नहीं मिलते.”
- “सच्ची भक्ति में जाति, धर्म एवं समाजिक स्थिति का कोई महत्व नहीं है.”
- “भगवान ने सभी मनुष्यों को एक समान बनाया है, इसलिए हमें किसी को नीचा नहीं देखना चाहिए.”
- “कोई भी व्यक्ति अच्छा या बुरा नहीं होता है, मनुष्य केवल अपने कर्मों के आधार पर अच्छा – बुरा होता है.”
ये उनके विचार और उपदेश हैं जो मानवता, भक्ति, और ईश्वर के प्रति श्रद्धा के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को उजागर करते हैं. उन्होंने जातिवाद और अंतर-सामाजिक भेद के खिलाफ थे और सभी मनुष्यों को एक समान दृष्टि से देखते थे.
FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न: संत रविदास के जीवन का क्या उद्देश्य था?
उत्तर: संत रविदास के जीवन का उद्देश्य – आध्यात्मिकता, समाज में समानता, भक्ति, और प्रेम के माध्यम से मानवता को समृद्धि और उन्नति प्रदान करना था.
प्रश्न: रविदास जी का असली नाम क्या है?
उत्तर: रविदास जी का असली नाम ‘संत रविदास’ था परन्तु इन्हें रैदास के नाम से भी जाना जाता है.
प्रश्न: संत शिरोमणि किसे माना गया है और क्यों?
उत्तर: संत शिरोमणि को संत रविदास जी के उद्धारक और उनके शिक्षाओं के प्रमुख प्रचारक के रूप में माना गया है. उन्होंने समाज में जाति भेदभाव और सामाजिक असमानता के खिलाफ सशक्त आंदोलन किया और भगवान के प्रति अनुराग और सभी मानवों के समान अधिकार की महत्वपूर्ण बातें सिखाई.
प्रश्न: गुरु रविदास जी का जन्म कब और कहां हुआ था?
उत्तर: गुरु रविदास जी का जन्म सन् 1377 ईस्वी में वाराणसी जिले के अंतर्गत गोवर्धनपुर गाँव में हुआ था. इनके जन्म पे मतभेद है इसलिए कुछ विद्वान् इनका जन्म सन् 1398 ई० में मानते है.
प्रश्न: संत रविदास की मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर: संत रविदास की मृत्यु के बारे में स्पष्ट और प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है. उनकी मृत्यु के बारे में कई विभिन्न कथाएँ हैं, लेकिन उनमें से कोई भी आधिकारिक रूप से सत्यापित नहीं है. यह ज्ञात है कि संत रविदास जी का जीवन उनके आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए महत्वपूर्ण था, और उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से समाज में सुधार करने का काम किया. उनकी आत्मा का निवास आज भी उनकी रचनाओं और उनके शिष्यों के द्वारा जीवंत है, और वे एक महान संत के रूप में याद किए जाते हैं.
प्रश्न: रविदास जी का गोत्र क्या है?
उत्तर: ऐसा विद्नाओ का कहना है की रविदास जी का गोत्र चमार जाती है क्योंकि रविदास जी जुटे गाठने का कार्य किये करते थे.
प्रश्न: रविदास की मृत्यु कब हुई?
उत्तर: रविदास जी की मृत्यु सन् 1377 से सन् 1398 ई० के बिच में हुई थी, परन्तु इनके जन्म पे अभी तक मतभेद बना हुआ है.
प्रश्न: संत रविदास का जन्म कहां हुआ था?
उत्तर: संत रविदास का जन्म भारत के वाराणसी जिले के अंतर्गत गोवर्धनपुर गाँव में हुआ था.
प्रश्न: गुरु संत रविदास का जीवन परिचय क्या है?
उत्तर: गुरु संत रविदास एक महान संत, कवि, और समाज सुधारक थे, जिन्होंने 15 वीं शताब्दी में भारतीय समाज को समाजिक असमानता के खिलाफ खुले मन से आवाज उठाई.
प्रश्न: उनका संदेश क्या था?
उत्तर: उनका प्रमुख संदेश समाज में समानता, साक्षरता, और भ्रातृत्व के मूल मूल्यों की ओर बढ़ने का था.
प्रश्न: गुरु संत रविदास ने किन-किन ग्रंथों के लिए योगदान दिया?
उत्तर: उन्होंने अपने रचे गए भजनों को गुरुग्रंथ साहिब में शामिल किया और उन्होंने रविदासीया पंथ की स्थापना की.
प्रश्न: कैसे गुरु संत रविदास ने जाति पात का खंडन किया?
उत्तर: वे अपने काम और संदेश के माध्यम से जाति पात के खिलाफ उठे और समाज में सामाजिक समानता को प्रमोट किया.
प्रश्न: गुरु संत रविदास का योगदान आज तक क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: उनका योगदान आज भी हमारे समाज में महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने समाज में सामाजिक असमानता के खिलाफ एकजुट होने का संदेश दिया और मानवता के मूल मूल्यों की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
निषकर्ष
प्रिय छात्रो आज हम लोगो ने “Sant Ravidas Ka Jivan Parichay” के बारे में काफी विस्तार से जान लिया है. आज हम लोगो ने संत रविदास जिनका दूसरा नाम रैदास है उनके जीवनी को काफी अच्छे से समझा और जाना है की रविदास जी 15 वी सदी के एक्माहन कवि थे.
गुरु संत रविदास एक महान संत, कवि, और समाज सुधारक थे, जिन्होंने अपने जीवन में जाति पात के खिलाफ आवाज उठाई और समाज को सामाजिक असमानता के खिलाफ एकजुट किया. उनका संदेश आज भी हमारे समाज में महत्वपूर्ण है और हमें इसे याद रखना चाहिए.
हम लोगो ने रैदास के जीवनी के बारे में बहुत कुछ जाना है जैसे -जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाये आदि के बारे में.
आज हम लोगो ने Raidas Ka Jivan Parichay Class 9 PDF तथा संत रविदास जी का इतिहास PDF भी आप लोगो के साथ साझा की है जिसके मदद से आप लोग और बेहतर जान सकते है. आपको आज कि हमारी लेख संत रविदास का जीवन परिचय कैसा लगा हमें कमेंट करके बताये.
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