प्रिय छात्रो आज हम लोग Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay को समझेंगे. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, भाषा शैली, रचनाये आदि.
हम सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के जीवन परिचय से जुड़े सभी शब्दों को एक – एक करके विस्तार से समझते हुए आगे बढ़ेंगे.
हम Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay PDF भी आप लोगो के साथ आगे साझा करेंगे. आप लोग अपनी एग्जाम की तैयारी बेहतर कर पाए इसलिए आप लोग सूर्यकांत जी की जीवनी को अवश्य पढियेगा.
यदि आप लोग इस लेख को अंत तक पढ़ते है तो मैं दावा कर सकता हु की आपको दुबारा कभी इन्टरनेट पे वापस से सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय हिंदी में खोजने की जरूरत नही पड़ेगी.
संक्षिप्त में Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay Class 10th
प्रिय छात्रो हम लोग पहले एक टेबल के माध्यम से Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay को संक्षिप्त में जानेंगे. यदि आप लोग इस टेबल को ध्यान से पढ़ लेते है तो आप लोग कक्षा 10th में अगर पढ़ते है तो अपने बोर्ड एग्जाम में बहुत ही अच्छे तरीके से ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय लिखिए’ का उत्तर दे पाएंगे.
पूरा नाम | सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी |
बचपन का नाम | सूर्यकांत |
जन्म वर्ष | 21 फरवरी 1897 ईस्वी |
जन्म स्थान | पश्चिम बंगाल राज्य के मेदिनीपुर जिला |
पिता जी का नाम | पंडित रामसहाय त्रिपाठी जी |
माता जी का नाम | रुकमनी त्रिपाठी |
पत्नी का नाम | मनोहर देवी जी |
पुत्र/पुत्री | केवल पुत्री |
शिक्षा | सिर्फ हाईस्कूल तक |
पेशा | कवि, लेखक, नाटकार एवं उपन्यासकार |
काल | आधुनिक काल |
भाषा | खड़ीबोली हिन्दी |
शैली | सरल मधुर एवं भावात्मक शैली |
विधा | गद्य एवं पद्य |
आन्दोलन | छायावाद तथा प्रगतिवाद |
महान कार्य | राम की शक्ति पूजा एम सरोज स्मृति |
प्रमुख रचनाये | ‘आनामिका’, ‘तुलसीदास‘, ‘अप्सरा’, ‘महाभारत’ आदि |
पुरस्कार | साहित्य अकादमी |
मृत्यु वर्ष | 15 अक्टूबर सन् 1961 ईस्वी |
मृत्यु स्थान | इलाहाबाद उत्तर – प्रदेश राज्य में |
विस्तार से जानिए सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय इन हिन्दी में
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जीवन परिचय बहुत ही संघर्षो से भरा हुआ है. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का जन्म मेदिनीपुर (बंगाल) के महिषादल राज्य में 21 फरवरी 1896 ईस्वी मे हुआ था.
इनकी स्कुल शिक्षा केवल मैट्रिक तक हुई. उनका जन्म एक छोटे से गांव से हुआ था, लेकिन उन्होंने अपने जीवन में बड़ी मेहनत और संघर्ष के साथ कविता और साहित्य के क्षेत्र में अपना नाम बनाया. दिन 15 अक्टूबर सन् 1961 ईस्वी को सूर्यकान्त जी का निधन हो गया.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म वर्ष एवं स्थान
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 21 फरवरी 1897 ईस्वी को पश्चिम बंगाल राज्य के मेदिनीपुर जिले के महिषादल गाव में हुआ था. सूर्यकांत निराला का जन्म बंगाल में हुआ.
लेकिन उनके परिवार ने उन्हें उत्तर प्रदेश के गाँव में बढ़ाया. उन्होंने अपने जीवन में महत्वपूर्ण लेखन कार्य किया और छायावाद के महाकवि के रूप में प्रमुखता प्राप्त की. उनका जन्म भारतीय साहित्य के इतिहास में महत्वपूर्ण है.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का माता – पिता
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के पिता जी का नाम पंडित रामसहाय त्रिपाठी था, जो उत्तर प्रदेश के गढ़ाकोला ग्राम के निवासी थे.
उनके पिता एक सरकारी अधिकारी थे और महिषादल राज्य में राजकीय सेवा में कार्य करते थे. उनकी माता जी का नाम रुकमणी देवी जी था. सूर्यकांत का जन्म बंगाल के महिषादल जिले में हुआ था.
लेकिन उनके परिवार ने उन्हें उत्तर प्रदेश के गाँव में पाला – पोषा. उनके माता-पिता ने उनकी शिक्षा और साहित्यिक रुचि को समर्थन दिया और उनके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का बचपन का नाम
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का बचपन का नाम “सूरजकांत” था. उनका जन्म 21 फरवरी 1897 को बंगाल के महिषादल जिले में हुआ था.
वे छोटे से ही अत्यधिक बुद्धिमान थे और उनकी रचनाओं में उनके बचपन के पलों की झलक मिलती है. उन्होंने बचपन में कुश्ती, घुड़सवारी, और खेलों में भी बड़ा रुचि दिखाया था.
वे सीधे और साहसी थे और बचपन से ही एक महान कवि बनने के लिए अपने सपनों का पीछा किया.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का शिक्षा
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा महिषादल हाई स्कूल से प्राप्त की, जो कि उनके जन्मस्थल में था. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी केवल हाई स्कूल तक ही पढ़े – लिखे थे.
उन्होंने वहाँ पर संस्कृत, बंगला, और अंग्रेजी की पढ़ाई की. इनका शिक्षा के प्रति विशेष रुचि थी और वे अपने गुरुओं के मार्गदर्शन में शिक्षा में समर्पित रहे.
उन्होंने लखनऊ आकर ‘गंगा पुस्तकमाला’ का संपादन किया और ‘सुधा’ पत्रिका के संपादकीय लिखने लगे.
उन्होंने हिंदी साहित्य में अपने अद्वितीय योगदान के लिए अपनी शिक्षा को सफलता की ओर कदम बढ़ाया और हिंदी साहित्य को एक नया दिशा देने में मदद की.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का वैवाहिक जीवन
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का वैवाहिक जीवन उनकी जीवन की कठिनाइयों और उनके रचनात्मक यात्रा का हिस्सा था.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी के पत्नी का नाम ‘मनोहरा देवी’ था और इनसे इन्हें एक पुत्री की प्राप्ति हुई थी. उनका विवाह सर्वधर्म संगम और साहित्यिक संजीवनी नामक कविता के माध्यम से मनोहरा देवी के साथ हुआ था.
विवाह के बाद, उनके जीवन में कई आपदाएं आईं, जिसमें उनके बच्चों की मौत भी शामिल थी. इन दुखों के बावजूद, उन्होंने अपने रचनात्मक कार्य को जारी रखा और अपनी पत्नी के निधन के बाद भी लेखन कार्य में लगे रहे.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का मृत्यु वर्ष एवं स्थान
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का मृत्यु वर्ष 15 अक्टूबर सन् 1961 ईस्वी में हुआ था. उनका देहांत 15 अक्टूबर, 1961 को प्रयागराज (इलाहाबाद), उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ.
उनकी मृत्यु ने हिंदी साहित्य को एक महान कवि की याद में एक सुखद दुखद घड़ी दिलाई, और उनके लेखन कार्य को अमर बना दिया.
उनका नाम आज भी हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण रचनाकारों में गिना जाता है, और उनकी कविताएँ और रचनाएँ उनकी अमरता को दर्शाती हैं.
इसे भी पढ़े: सूरदास का जीवन परिचय
प्रिय छात्रो मुझे उम्मीद है की आप सभी ‘Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay’ को विस्तार से जान चुके है.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का जीवन परिचय कक्षा 10th एवं कक्षा 12th में भी पूछी जाती है. इसलिए आप मेरे द्वारा बताई गयी निराला जी का जीवनी को बहुत ही अच्छे तरीके से याद कर लीजियेगा.
Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay PDF
प्रिय छात्रो अब मैं आपको सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जीवन परिचय pdf में देने वाला हु. इस पीडीऍफ़ में आपको सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का जीवन परिचय का एक – एक चीज बहुत अच्छे से मिलेगा. आप लोग सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला pdf की मदद से बोर्ड एग्जाम में पूछे जाने वाले जीवनी को और अच्छे से लिख सकते है.
File Name | Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay PDF |
File Size | 431 KB |
No of Page | 07 |
Language | Hindi |
Quality | High |
Price | Free |
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, भारतीय साहित्य के महान कवि, 21 फरवरी 1897 को बंगाल के महिषादल में पैदा हुए. उनके पिता पण्डित रामसहाय त्रिपाठी राजकीय सेवा में काम करते थे, और माता का नाम रुकमणी देवी था.
उनका बचपन बहुत ही कठिनाइयों भरा था, क्योंकि उनकी माता की मृत्यु उनके दो वर्ष की आयु में हो गई थी.
निराला ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा महिषादल में प्राप्त की और फिर कोलकाता में विद्या निकेतन से साहित्यिक शिक्षा प्राप्त की.
उनकी कविताओं में छायावादी आदर्शों का पालन हुआ, और उन्होंने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दिलाई.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन 15 अक्टूबर 1961 को प्रयागराज (इलाहाबाद), उत्तर प्रदेश में समाप्त हुआ, लेकिन उनका काव्य और योगदान हिंदी साहित्य के इतिहास में याद करने योग्य है.
आपको इस पीडीऍफ़ में सूर्यकांत त्रिपाठी का जीवन परिचय के साथ ही साथ सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला का साहित्यिक परिचय pdf में भी मिलेंगे.
इस पीडीऍफ़ में जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, प्रमुख रचनाये आदि मौजूद रहेंगी जिसकी मदद से निराला जी का जीवनी आप याद कर सकते है.
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला का साहित्यिक परिचय PDF
प्रिय छात्रो अब हम लोग सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला का साहित्यिक परिचय PDF में जानेंगे. मैं आपको निचे एक पीडीऍफ़ फाइल का लिंक दे दूंगा जिसमे निराला जी का साहित्यिक परिचय होगा.
आप लोग उपर के भी पीडीऍफ़ में ये साहित्यिक परिचय पा सकते है. चलिए हम लोग सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का साहित्यिक परिचय के बारे में जानते है –
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण कवि हैं, जिन्होंने छायावाद आंदोलन का प्रमुख नेतृत्व किया. उनका जन्म 21 फरवरी 1897 को महिषादल, बंगाल (अब वेस्ट बंगाल, भारत) में हुआ था और उनका आखिरी समय 15 अक्टूबर 1961 को इलाहाबाद में बिता.
निराला की साहित्य भाषा, प्रेम, और भारतीय संस्कृति पर आधारित हैं. उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, और निबंध के क्षेत्र में अपनी क्षमता दिखाई.
उनकी कविताएँ भावनाओं और विचारों को सुंदरता के साथ व्यक्त करती हैं, और उनके काव्य में गहरी भावनाओं का पर्याप्त मात्रा मिलता है.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का छायावाद के साथ गहरा संबंध था, और उन्होंने इस आंदोलन को साहित्यिक दृष्टि से मजबूत किया.
उनकी कविताएँ आज भी भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में मानी जाती हैं और उन्होंने छायावाद के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान दिया.
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ भारतीय साहित्य के छायावादी आंदोलन के प्रमुख कवि थे. उन्होंने अपने जीवन के दौरान विभिन्न विषयों पर बहुत सारी महत्वपूर्ण रचनाएँ लिखीं, जिनमें कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास, और निबंध शामिल हैं.
उन्होंने भारतीय समाज, प्रेम, भाषा, और संस्कृति पर अपने लेखन के माध्यम से गहरे विचार और भावनाएँ व्यक्त की.
उनका साहित्य आज भी हमारे साहित्यिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है और वे छायावाद के प्रमुख कवियों में से एक हैं जिनका काव्य आज भी हमारी साहित्यिक सोच को प्रेरित करता है
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रमुख रचनाएं ट्रिक से
प्रिय छात्रो आज हम लोग सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रमुख रचनाएं ट्रिक से जानेंगे. यह ट्रिक आपको रचनाओ को याद रखने में मदद करेगी.
ऐसे ही और भी ट्रिक से मैंने अनेको जीवन परिचय में उनकी रचनाये को याद कराया है जिसे आप लोग होम पेज पे जाकर पढ़ सकते है.
निराला जी की रचनाये बहुत सी है लेकिन मैं ट्रिक से कुछ प्रमुख रचनाओ को बताने वाला हु.
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने 1920 ईस्वी के आसपास अपने लेखन कार्य की शुरुआत की थी. उनकी पहली रचना ‘जन्मभूमि’ एक गीत के रूप में थी.
इसके बाद, उन्होंने ‘जूही की कली’ नामक कविता को लंबे समय तक अपनी पहली रचना के रूप में प्रसिद्ध किया, जिसका रचनाकाल वास्तव में 1916 ईस्वी था, लेकिन यह कविता 1922 ईस्वी में पहली बार प्रकाशित हुई थी.
उन्होंने कविता के अलावा कहानी साहित्य और गद्य में भी अपनी रचनाएं लिखी, जिनमें वे अपने कला का प्रदर्शन किया.
ट्रिक: अपसरा भाभी दो आम मागी
- अ –अर्चना
- प – परिमल
- स – संध्या सुन्दरी
- रा – राग विराग
- भा – भारत वन्दना
- भी – भिक्षुक
- दो – दो शरण
- आ – आराधना
- म – महाभारत
- मा – मातृ वंदना
- गी – गीतिका
आप लोग उपर की कुछ रचनाओ को ट्रिक्स से समझ सकते है अरु अपने बोर्ड एग्जाम में इतने को ही लिख सकते है.
आपको बोर्ड एग्जाम में रचनाये लिखने के एक से दो अंक मिलते है और उतने अंक पाने के लिए इतनी रचनाये काफी है.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की काव्य-संग्रह
- अनामिका (सन् 1923 ई.): यह संग्रह निराला की अंग्रेजी काव्यरचनाओं का हिंदी में अनुवाद है. इसमें उनकी भारतीय संस्कृति, प्रेम, और धर्म के प्रति उनकी भावनाओं का प्रतिष्ठान है.
- परिमल (सन् 1930 ई.): यह संग्रह निराला की कविताओं का है जिनमें वे समाज और मानवता के मुद्दे पर विचार करते हैं.
- गीतिका (सन् 1936 ई.): इस संग्रह में वे अपने भावनात्मक और भक्तिभावनाओं को व्यक्त करते हैं, जिनमें प्रेम, आत्मा, और ईश्वर के प्रति उनकी गहरी भावनाएं हैं.
- अनामिका (द्वितीय) (सन् 1939 ई.): यह संग्रह पहले “अनामिका” संग्रह की एक नयी संस्करण है और इसमें “सरोज स्मृति” और “राम की शक्तिपूजा” जैसी प्रसिद्ध कविताएं भी शामिल हैं.
- तुलसीदास (सन् 1939 ई.): इस संग्रह में निराला ने संत तुलसीदास के जीवन और काव्य के प्रति अपनी गहरी भावनाएं प्रकट की हैं.
- कुकुरमुत्ता (सन् 1942 ई.): यह संग्रह उनकी दैहिक और भौतिक संवादों को अद्वितीय तरीके से प्रस्तुत करता है, जिसमें मनुष्यता के मुद्दे और जीवन के असल तथ्यों पर विचार किया गया है.
- अणिमा (सन् 1943 ई.): इस संग्रह में वे अपनी आत्मा की खोज करते हैं और अद्वितीय भावनाओं को अभिव्यक्ति देते हैं.
- बेला (सन् 1946 ई.): यह संग्रह निराला की आत्मकथा के रूप में है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को साझा किया है.
- नए पत्ते (सन् 1946 ई.): इस संग्रह में वे समाज और राष्ट्र के विकास के मुद्दे पर चिंतन करते हैं और उनकी आवश्यकता के नए पत्ते का संकेत करते हैं.
- अर्चना (सन् 1950 ई.): इस संग्रह में निराला ने भक्ति और प्रेम के विषय में अपने भावनात्मक और धार्मिक विचार प्रस्तुत किए हैं.
- आराधना (सन् 1953 ई.): इस संग्रह में वे भक्ति और आत्मा के महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार करते हैं.
- गीत कुंज (सन् 1954 ई.): यह संग्रह विविध भावनाओं, जैसे की प्रेम, भक्ति, और ध्यान को अद्वितीय तरीके से व्यक्त करता है.
- सांध्य काकली: इस संग्रह में वे अपने आलोचनात्मक और सामाजिक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हैं, जिसमें समस्याओं और समाज के मुद्दों का अद्वितीय विचार किया गया है.
- अपरा (संचयन): यह संग्रह निराला के निबंधों का संकलन है, जिनमें उन्होंने समाज, साहित्य, और धर्म के मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के विभिन्न काव्य-संग्रह, उपन्यास, कहानी-संग्रह, निबंध-आलोचना, पुराण-कथा, और बालोपयोगी साहित्य के बारे में विस्तार से जानकारी निम्नलिखित है:
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का उपन्यास
- अप्सरा (सन् 1931 ई.): इस संग्रह में निराला ने अप्सराओं के सौंदर्य और प्रेम को व्यक्त किया है. वे महसूस कराते हैं कि प्रेम और सौंदर्य का आलंब न केवल दिव्यता में होता है, बल्कि मानव जीवन में भी हो सकता है.
- अलका (सन् 1933 ई.): इस संग्रह में निराला ने अलका के प्रेम की कहानी को दर्शाया है, जो उनकी कविताओं के माध्यम से व्यक्त की जाती है.
- प्रभावती (सन् 1936 ई.): इस संग्रह में वे अपनी भावनाओं को प्रकट करते हैं, जिसमें प्रेम, धर्म, और दर्शन के मुद्दे शामिल हैं.
- निरूपमा (सन् 1936 ई.): इस संग्रह में वे विचारों को एक अद्वितीय तरीके से प्रस्तुत करते हैं, जो मानवता के विकास और मानवीय समस्याओं पर आधारित हैं.
- कुल्ली भाट (सन् 1938-39 ई.): इस संग्रह में वे कुल्ली भाट के किस्से और महत्वपूर्ण घटनाओं को दर्शाते हैं, जिनमें समाजिक और राजनीतिक मुद्दे भी शामिल हैं.
- बिल्लेसुर बकरिहा (सन् 1942 ई.): इस संग्रह में वे बिल्लेसुर बकरिहा के जीवन की रोमांचक कहानी को प्रस्तुत करते हैं, जो समाज के मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित करती है.
- चोटी की पकड़ (सन् 1946 ई.): इस संग्रह में वे चोटी की पकड़ के महत्वपूर्ण मोमेंट्स को दर्शाते हैं, जिनमें सामाजिक और राजनीतिक मुद्दें शामिल हैं.
- काले कारनामे (सन् 1950 ई.): यह संग्रह अपूर्ण है, और इसमें वे सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के बारे में विचार करते हैं.
- चमेली (अपूर्ण): इस संग्रह का संपूर्ण रूप से प्रकाशन नहीं हुआ है, इसलिए इसके बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है.
- इन्दुलेखा (अपूर्ण): यह भी एक अपूर्ण संग्रह है, और इसके बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का कहानी-संग्रह
- लिलि (सन् 1934 ई.): इस संग्रह में वे विभिन्न प्रेम कहानियों को प्रस्तुत करते हैं, जिनमें वे प्रेम और रिश्तों के मामलों को व्यक्त करते हैं.
- सखी (सन् 1935 ई.): इस संग्रह में वे महिलाओं के जीवन के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और विभिन्न कथाएं प्रस्तुत करते हैं.
- सुकुल की बीवी (सन् 1941 ई.): इस संग्रह में वे जातिवाद और समाज के मुद्दों को प्रस्तुत करते हैं, जिसमें सुकुल की बीवी की कहानी को भी शामिल किया गया है.
- चतुरी-चमार (सन् 1945 ई.): इस संग्रह का नाम पहले “सखी” था, और इसमें महिलाओं के जीवन की कथाएं होती हैं, जिन्हें बदलकर “चतुरी-चमार” के नाम से पुनर्प्रकाशित किया गया है.
- देवी (सन् 1947 ई.): इस संग्रह में वे अपनी कहानियों को प्रस्तुत करते हैं, और इसमें नई कहानी “जान की” शामिल है, जो पहले के पुस्तकों से संचित की गई है.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का अनुवाद
- रामचरितमानस (विनय भाग) (सन् 1948 ई.): इसमें वे तुलसीदास के महाकाव्य “रामचरितमानस” का विनय भाग का अनुवाद करते हैं.
- आनन्दमठ: इस अनुवाद में वे विवेकानंद के ग्रंथ “आनन्दमठ” का हिन्दी में अनुवाद करते हैं.
- विषवृक्ष: इसमें वे विष्णुशर्मा के “पञ्चतंत्र” के किस्से का हिन्दी में अनुवाद करते हैं.
- कृष्णकांत का वसीयतनामा: इसमें वे कृष्णकांत के कविताओं का अनुवाद करते हैं.
- कपालकुंडला: इसमें वे कपालकुंडला के किस्से का हिन्दी में अनुवाद करते हैं.
- दुर्गेश नन्दिनी: इसमें वे दुर्गेश नन्दिनी के किस्से का हिन्दी में अनुवाद करते हैं.
- राजसिंह: इसमें वे राजसिंह के कविताओं का अनुवाद करते हैं.
- राजरानी: इसमें वे राजरानी के कविताओं का अनुवाद करते हैं.
- देवी चौधरानी: इसमें वे देवी चौधरानी के कविताओं का अनुवाद करते हैं.
- युगलांगुलीय: इसमें वे युगलांगुलीय के कविताओं का अनुवाद करते हैं.
- चन्द्रशेखर: इसमें वे चन्द्रशेखर के कविताओं का अनुवाद करते हैं.
- रजनी: इसमें वे रजनी के कविताओं का अनुवाद करते हैं.
- श्रीराम कृष्णवचनामृत: इसमें वे श्रीराम कृष्णवचनामृत के उपदेशों का हिन्दी में अनुवाद करते हैं.
- परिव्राजक: इसमें वे परिव्राजक के कविताओं का अनुवाद करते हैं.
- भारत में विवेकानंद: इसमें वे स्वामी विवेकानंद के जीवन और विचारों का हिन्दी में अनुवाद करते हैं.
- राजयोग (अंशानुवाद): इसमें वे स्वामी विवेकानंद के राजयोग के अंश का हिन्दी में अनुवाद करते हैं.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का निबंध-आलोचना
- रवीन्द्र कविता कानन (सन् 1929 ई.): इस निबंध में वे भारतीय साहित्य के महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर के काव्य कानन की आलोचना करते हैं.
- प्रबंध पद्म (सन् 1934 ई.): इसमें वे भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्रति अपने विचार प्रस्तुत करते हैं.
- प्रबंध प्रतिमा (सन् 1940 ई.): इस निबंध में वे लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ के काव्य प्रतिमा की आलोचना करते हैं.
- चाबुक (सन् 1942 ई.): इस निबंध में वे समाज और साहित्य के मुद्दों के बारे में अपने विचार प्रस्तुत करते हैं.
- चयन (सन् 1957 ई.): इस संग्रह में वे अपने चुने गए निबंधों का संकलन प्रस्तुत करते हैं.
- संग्रह (सन् 1963 ई.): इसमें वे अपने निबंधों का संकलन प्रस्तुत करते हैं.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का बालोपयोगी साहित्य
- भक्त ध्रुव (सन् 1926 ई.): इस बालोपयोगी साहित्य का मुख्य उद्देश्य बच्चों को धार्मिक और मौर्य सिंह की महत्वपूर्ण कथाओं के माध्यम से मोरल शिक्षा देना है.
- भक्त प्रहलाद (सन् 1926 ई.): इसमें भक्त प्रहलाद की कहानी को विवरणित किया गया है, जो हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण है.
- भीष्म (सन् 1926 ई.): इसमें महाभारत के महान योद्धा भीष्म के जीवन की कहानी को बच्चों के लिए सुलभता से समझाने का प्रयास किया गया है.
- महाराणा प्रताप (सन् 1927 ई.): इसमें महाराणा प्रताप के वीरता की कहानी को बच्चों के लिए प्रस्तुत किया गया है.
- सीखभरी कहानियां (ईसप की नीति कथाएं) (सन् 1969 ई.): इस संग्रह में वे नीति कथाओं को प्रस्तुत करते हैं, जिनमें शिक्षाप्रद संदेश होते हैं.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का पुराण-कथा
- महाभारत (सन् 1939 ई.): इसमें वे महाभारत की कथाओं को संकलित करते हैं, जो महाकाव्य की महत्वपूर्ण कथाएं हैं.
- रामायण की अन्तर्कथाएं (सन् 1956 ई.): इसमें वे रामायण की अन्तर्कथाओं को प्रस्तुत करते हैं, जो महाकाव्य के महत्वपूर्ण पलों को विवरण करती हैं.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने भारतीय साहित्य के विभिन्न पहलुओं को छूने के लिए अपने अनूठे कौशल का प्रदर्शन किया और उनकी रचनाएँ आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच में लोकप्रिय हैं.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की भाषा शैली
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी एक महान भारतीय कवि थे जिनकी काव्य भाषा-शैली उनके साहित्यिक योगदान का महत्वपूर्ण हिस्सा था.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की काव्य भाषा ‘खड़ीबोली’, ‘हिन्दी’ था और उनकी शैली मधुर, मनमोहक एवं मुहावरेदार थी. उनकी रचनाओं में भाषा का प्रयोग अद्वितीय था, जिससे वे एक अलौकिक कविता की ऊँचाइयों को प्राप्त करते थे.
निराला की भाषा-शैली का विशेष गुण होता था, जिसमें सरलता, सूक्ष्मता, और गहराई से विचारों को व्यक्त करने का सामर्थ्य था.
उन्होंने साहित्यिक रूप में भाषा की सुंदरता को बढ़ावा दिया और आरंभिक मोदर्न हिंदी कविता के प्रमुख प्रवर्तकों में से एक थे.
निराला की कविताओं में अक्सर नैतिक और सामाजिक संदेशों को सुंदरता से प्रस्तुत किया गया, जो उनकी भाषा को और भी महत्वपूर्ण बनाते थे.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की भाषा-शैली ने हिंदी साहित्य को नई दिशाएँ दिलाई और उन्होंने भाषा को एक साहित्यिक माध्यम के रूप में मजबूती से स्थापित किया.
उनकी रचनाएँ आज भी हमारे साहित्य के गौरवमय भाग के रूप में मानी जाती हैं और उनकी भाषा-शैली का प्रभाव साहित्य प्रेमियों पर दिन-प्रतिदिन महत्वपूर्ण रहता है.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की काव्यगत विशेषताएँ उदाहरण सहित
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की काव्यगत विशेषताएँ उदाहरणों के साथ निम्नलिखित हैं-
- रसात्मकता (Emotional Depth): निराला की कविताओं में गहरी भावनाएँ होती हैं, जैसे कि विरह, आकुलता, प्रेम, और अद्भुतता. इनकी कविता “कविता” में विरह के भाव का अभिव्यक्ति एक उदाहरण है:
उदहारण: फिर छाया परिमल सी, जलती ज्यों कोई चिता; और जाने क्यूँ ये एक त्रास, ये भी जाने वो भी एक त्रास.
- छंदशास्त्र का आदर: निराला ने छंदशास्त्र का मानन किया और अलंकार, रस, और छंद का सुखद प्रयोग किया. उनकी कविता “राग-दरबारी” में उल्लेखणीय छंद का प्रयोग किया गया है:
उदहारण: अनपढ़ में जो तलवार काटता, पढ़े-लिखे में वो बैठ कर राग; नगर फिरी नगर फिरी वो बाजी, अकेले में गया जब साग.
- दृश्यवाचन (Imagery): निराला के काव्य में शब्दों का चुनाव और छवियों का सुंदर वर्णन होता है, जिससे पाठकों के मन में वास्तविक तस्वीरें बनती हैं. उनकी कविता “सावन-के-दिन आये” इसका उदाहरण है:
उदहारण: सावन-के-दिन आये सवन-के-दिन आये, फुलवा झूम के पानी को लाये; गीला गीला भँवर में संसार, मिठे-मिठे फूल मला ललकार.
- प्राकृतिकता: निराला के काव्य में प्राकृतिक तत्वों का महत्वपूर्ण स्थान होता है, जैसे कि प्रकृति, वन्यजीवन, और वातावरण. उनकी कविता “करण-घर” इस प्राकृतिकता का अद्वितीय उदाहरण है:
उदहारण: आलसी करत बैठे करण घर, वन जाय पथिक आवे पार; सरस बढ़ तट पर चान्दन घास, वर्षा जब बीती आए दूधधार.
- आदर्शवाद और समाजिक चिंतन: उनकी कविताओं में समाज के अद्भुतता और आदर्शों के प्रति उनकी विशेष स्नेहभावना प्रतिफलित होती है. उन्होंने अपने काव्य में समाज की समस्याओं और उनके समाधान के विचारों को प्रस्तुत किया.
इन विशेषताओं के साथ, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविताओं में उनके दर्शन, राग-द्वेष, और विविध भावनाओं का सुंदर और गहरा व्यापक प्रयोग देखा जा सकता है.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का कार्य क्षेत्र
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का कार्यक्षेत्र विशाल था और उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी कला का प्रदर्शन किया.
- सम्पादन और साहित्यिक कार्य: सूर्यकांत निराला ने कई समय तक संपादक के रूप में काम किया. उन्होंने पत्रिकाओं और साहित्यिक प्रकाशनों का संपादन किया, जिसमें ‘समन्वय’ और ‘मतवाला’ शामिल हैं.
- कविता: उन्होंने अपने शब्दों में समाज, जीवन, और व्यक्तिगत अनुभवों को व्यक्त किया. उनकी कविताओं में उत्कृष्ट रचनात्मकता और उद्भावनात्मक विचारों का प्रदर्शन होता है.
- निबंध और आलोचना: सूर्यकांत निराला ने अपने विचारों को निबंधों और आलोचनाओं के माध्यम से भी व्यक्त किया. उनके लेख विचारशीलता और साहित्यिक दृष्टिकोण को प्रकट करते हैं.
- काव्य संग्रह: सूर्यकांत निराला ने कई काव्य-संग्रह लिखे, जिनमें “अनामिका”, “परिमल”, “गीतिका”, “नये पत्ते” और “अर्चना” शामिल हैं. उनकी कविताएं अधिकतर जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास करती हैं.
- पुराण-कथा: उन्होंने “महाभारत” और “रामायण की अन्तर्कथाएं” जैसी महाकाव्यिक कथाओं का अनुवाद किया.
- बाल साहित्य: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने बाल साहित्य की ओर भी अपना ध्यान दिया और बच्चों के लिए कहानियों का संचय किया.
- अनुवाद: उन्होंने तुलसीदास के “रामचरितमानस” का अंशानुवाद किया और भारतीय विचारों को विश्व के साथी बनाने का प्रयास किया.
- धार्मिक ग्रंथों का अनुसंधान: सूर्यकांत निराला ने भारतीय धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया और उनके उन्नति को प्रमोट किया.
- समाज सेवा: उन्होंने विभिन्न समाजिक और सांस्कृतिक कार्यों में भाग लिया और जनसेवा का कार्य किया.
इस रूप में, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपने श्रेष्ठ रचनात्मक योगदान के माध्यम से हिंदी साहित्य को अमूर्त और अमर बनाया. उनके लेखन का प्रभाव आज भी हमारे साहित्यिक जीवन पर महत्वपूर्ण है.
FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
प्रश्न: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रसिद्ध रचना कौन सी है?
उत्तर: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रसिद्ध रचना ‘राम की शक्तिपूजा’ (Ram Ki Shakti Pooja) है. यह कविता उनके उपन्यास ‘रामकथा’ से ली गई है और इसमें भगवान राम की शक्ति और महत्त्व को महाकवि के रूप में व्यक्त किया गया है. ‘राम की शक्तिपूजा’ उनकी महत्त्वपूर्ण काव्य रचनाओं में से एक है और इसे हिंदी साहित्य के अत्यधिक महत्त्वपूर्ण काव्य के रूप में माना जाता है.
प्रश्न: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पहली रचना कौन सी है?
उत्तर: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पहली रचना ‘जन्मभूमि’ (Janmabhoomi) है.
प्रश्न: निराला जी को कौन सा पुरस्कार मिला है?
उत्तर: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को साहित्य अकादमी पुरस्कार (Sahitya Akademi Award) मिला है.
प्रश्न: सूर्यकांत त्रिपाठी जी की मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की मृत्यु 15 अक्टूबर 1961 ईस्वी को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत में हुई थी. उन्होंने हिन्दी साहित्य को अपने उत्कृष्ट योगदान के लिए याद किया जाता है।
प्रश्न: सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म और मृत्यु?
उत्तर: सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 21 फरवरी 1896 को हुआ था और उनकी मृत्यु 15 अक्टूबर 1961 को हुई. वे प्रमुख हिन्दी कवि और साहित्यकार थे.
प्रश्न: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की दो रचनाएं?
उत्तर: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की दो रचनाये ‘आनामिका’ और ‘जन्मभूमि’ है.
निष्कर्ष
प्रिय छात्रो आज हम लोगो ने “Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay” के बारे में बहुत ही विस्तार से समझ चुके है.
इसके साथ ही हम लोगो ने निराला जी का पीडीऍफ़ फाइल भी प्राप्त की है जिसके मदद से हम कभी भी सूर्यकांत त्रिपाठी निरला जी का जीवन परिचय पढ़ सकते है.
मैंने आपको आज जीवन परिचय और साहित्यिक परिचय बहुत ही अच्छे तरीके से बता दिया है इसके साथ ही आप ओगो को रचनाये भी ट्रिक से समझा दि है जिसे आप लोग अपने एक्सा में अच्छे से लिख सकते है.
बोर्ड एग्जाम की तैयारी कर रहे Class 10th और Class 12th के लिए निराला जी का जीवन परिचय बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि हर साल यह एग्जाम में आता है.