क्या आप भी Sarveshwar Dayal Saxena Ka Jivan Parichay के बारे में जानना चाहते है? तो आप आज मैं सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जीवन परिचय के बारे में विस्तार से बताने वला हु.
आज हम लोग सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का पूरा जीवनी को अच्छे से जानेंगे इसके साथ ही हम लोग इनका साहित्यिक परिचय और रचनाये को भी विस्तार से जानेंगे. यदि आप लोग Sarveshwar Dayal Saxena Ka Jeevan Parichay लेख को अंत तक पढ़ते है तो आपको यह एक दम याद हो जाने वाला है.
मैं आपको सर्वेश्वर जी का जीवनी का एक पीडीऍफ़ फाइल भी आप लोगो के साथ साझा करूँगा जिसे आप अपने मोबाइल में डाउनलोड करके रख सकते है और अपने नोट्स को तैयार कर सकते है. इनके जीवनी का पीडीऍफ़ फाइल आपको आगे इसी लेख में मिलेगा.
संक्षिप्त में जानिए ‘Sarveshwar Dayal Saxena Ka Jivan Parichay’
प्रिय छात्रो हम पहले सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जीवन परिचय को एक टेबल के माध्यम से संक्षिप्त में समझने का प्रयास करेंगे फिर उसके बाद हम लोग एक – एक पॉइंट को समझेंगे. यदि आप इस टेबल को अच्छे से पढ़ते है तो आपको सक्सेना जी का जीवनी अभी समझ में आ जाएगी.
पूरा नाम | सर्वेश्वर दयाल सक्सेना |
अन्य नाम | सर्वेश्वर जी |
जन्म वर्ष | 15 सितम्बर सन् 1927 ई० |
जन्म स्थान | उत्तर – प्रदेश राज्य के बलिया जिले में |
पिता जी का नाम | विश्वेश्वर दयाल |
माता जी का नाम | सौभाग्यवती देवी जी |
पेशा | कवि, साहित्यकार |
पत्नी का नाम | विमला देवी |
नागरिकता | भारतवासी |
शिक्षा | बी०ए० और सन् 1949 में एम०ए० |
पुरस्कार | साहित्य अकादमी पुरस्कार |
भाषा | हिन्दी, खड़ीबोली |
शैली | कोमल, मधुर एवं रचनात्मक |
प्रमुख रचनाये | ‘खूँटियों पर टंगे लोग’, ‘कुछ रंग कुछ गंध’ ‘पागल कुत्तों का मसीहा’, ‘बकरी’, ‘बतूता का जूता’ आदि. |
मृत्यु वर्ष | 23 सितम्बर सन् 1983 ई० |
मृत्यु स्थान | नई दिल्ली में |
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विस्तार से समझिये ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जीवन परिचय’ को
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म 15 सितम्बर सन् 1927 ई० को बलिया जिले में हुआ था. वे प्रमुख कवि और साहित्यकार थे, और ‘तीसरे सप्तक’ के प्रमुख कवियों में से एक थे.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी की रचनाएँ अनेक भाषाओं में अनुवादित हुईं. 23 सितम्बर सन् 1983 ई० में दिल्ली में सर्वेश्वर दयाल का निधन हो गया.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म वर्ष एवं स्थान
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी का जन्म 15 सितंबर वर्ष 1927 ई० को भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बस्ती जिले में हुआ था. सर्वेश्वर दयाल एक प्रमुख हिन्दी कवि और पत्रकार थे. उन्होंने इलाहाबाद से अपनी शिक्षा पूरी की और पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया.
सर्वेश्वर ने विभिन्न रेडियो स्टेशनों में काम किया और पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी कविताएँ और लेखनी भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण हैं, और उन्हें उनके साहित्यिक योगदान के लिए सर्वेक्षण किया जाता है.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का माता – पिता
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के पिता जी का नाम विश्वेश्वर दयाल था और सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के माता का नाम सौभाग्यवती देवी था.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के पिता विश्वेश्वर दयाल एक सामाजिक कार्यकर्ता और उपाध्यक्ष थे, जिन्होंने अपने समुदाय के उत्थान के लिए काम किया.
इनके पिता जी अपने समय के लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति थे और सर्वेश्वर के जीवन में समाजिक जागरूकता और काव्य के प्रति रुचि को प्रोत्साहित करने में मदद की.
उनके माता-पिता ने उन्हें शिक्षा और साहित्यिक रुचि के प्रति प्रोत्साहित किया, जिससे वे एक प्रमुख हिन्दी कवि और साहित्यकार बने.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की शिक्षा
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अपनी शिक्षा को ध्यानपूर्वक पूरा किया. उन्होंने इलाहाबाद से बी०ए० और सन् 1949 में एम०ए० की पढ़ाई की.
उनकी शिक्षा उनके साहित्यिक के प्रति को नई दिशा देने में मददगार रही. उन्होंने अपने शैली को कोमल और मधुर बनाया और रचनात्मक भाषा का प्रयोग किया.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की लेखन की धारा में भारतीय समाज और मानवता के मुद्दे उभरे. उनकी शिक्षा का प्रयोग उनके साहित्यिक योगदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
उनकी शिक्षा का परिणाम है कि वे एक प्रमुख हिन्दी कवि और साहित्यकार बने.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का वैवाहिक जीवन
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की पत्नी का नाम विमला देवी था. उनका वैवाहिक जीवन काल में खुशी और साहित्य के प्रति समर्पित था.
वे दोनों एक संवादपूर्ण और समर्थनीय संबंध रखते थे, जो उनके साहित्यिक यात्रा को और भी मजबूत बनाते थे.
विमला देवी भी एक साहित्यिक थी और उन्होंने अपने पति के साथ साहित्यिक कार्य में भाग लिया. उनका साथ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था, और वे एक-दूसरे के साथ खुशियों और कठिनाइयों का सामना करते रहे.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का कार्यक्षेत्र
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अपने कार्यक्षेत्र में साहित्य, कविता, नाटक, और पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने अपनी लघुकथाओं, कविताओं, और नाटकों के माध्यम से समाज के मुद्दों पर गंभीर विचार किए.
उनकी कविताएँ और रचनाएँ आम जनमानस के लिए सुलभ भाषा में थीं और वे विभिन्न समसामयिक विषयों पर लिखते रहे.
उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अपनी योगदान की और विभिन्न रेडियो स्टेशनों पर काम किया, जिससे वे भारतीय साहित्य और समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का मृत्यु वर्ष एवं स्थान
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का मृत्यु 23 सितंबर सन् 1983 ईस्वी को नई दिल्ली में हुआ. उनका दुखद निधन उनके और भी साहित्यिक महत्वपूर्ण काम करने की संजीवनी यादें छोड़कर गया.
उनका जाना एक महत्वपूर्ण अध्याय का समाप्त हो जाना था. लेकिन सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताएँ और रचनाएँ हमें सदैव उनके साहित्यिक योगदान की याद दिलाती रहेंगी.
उन्होंने भारतीय साहित्य को एक नया दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपनी मौजूदगी से हमें यह याद दिलाते हैं कि साहित्य की दुनिया कभी भी नहीं मरती.
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सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जीवन परिचय PDF
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PDF Name | सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जीवन परिचय PDF |
PDF Size | 465 KB |
No of Pages | 04 |
Category | Education |
Type | Downloadble |
Quality | High |
Price | Free |
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सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का साहित्यिक परिचय
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का साहित्य भारतीय हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली हिस्से के रूप में जाना जाता है.
उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक और व्यक्तिगत मुद्दों को उजागर किया और उनके काव्य में भावनाओं को गहराई से छूने का प्रयास किया.
सक्सेना जी की कविताएँ और कहानियाँ आम जनता के जीवन के मामूली पलों को अद्वितीयता से प्रस्तुत करती हैं.
उनकी रचनाएँ अधिकतर कोमल और मधुर भाषा में होती हैं, जो उनके पाठकों के दिलों में स्थायी स्थान बना लेती हैं.
सर्वेश्वर सक्सेना का साहित्य विविधता, गहराई, और समाजिक संवेदना के साथ भरपूर होता है, और उनके शब्दों का प्रभाव आज भी हमारे दिलों में गूंथा रहता है.
उनका काव्य हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण धारा का हिस्सा बन गया है, और उनकी यादें और रचनाएँ हमें सदैव प्रेरित करती रहेंगी.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताएँ और कहानियाँ उनकी अंतरात्मा की गहराइयों को छूने वाली होती थीं और उनमें आम जनता के दर्द, सुख-दुख, और जीवन के मामूली पलों का सुंदर चित्रण होता था.
उन्होंने ‘खूँटियों पर टंगे लोग’, ‘कुछ रंग कुछ गंध’, ‘पागल कुत्तों का मसीहा’, ‘बकरी’, ‘बतूता का जूता’ जैसी महत्वपूर्ण रचनाएँ की और उन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार भी जीता.
सर्वेश्वर सक्सेना का काव्य उनकी व्यक्तिगत भावनाओं और समाज के प्रति उनकी गहरी संवेदना का प्रतीक था, जिससे वे एक प्रमुख हिंदी साहित्यकार के रूप में याद किए जाते हैं.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की प्रमुख रचनाएं
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की प्रमुख रचनाये – ‘खूँटियों पर टंगे लोग’, ‘कुछ रंग कुछ गंध’ ‘पागल कुत्तों का मसीहा’, ‘बकरी’, ‘बतूता का जूता’ आदि है.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की काव्य और कथा-साहित्य के क्षेत्र में उनकी प्रमुख रचनाएँ शामिल हैं, जो उनके लिखने के सौंदर्य और विचारशीलता को प्रकट करती हैं. उन्होंने कई उपन्यास, कविता संग्रह, नाटक, और बच्चों के लिए कहानियों का लेख किया है.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की नाटक
- “बकरी” (1974): यह नाटक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का प्रमुख नाटक है और इसे लगभग सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद और मंचन किया गया है. इसमें व्यक्ति और समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत किया गया है.
- “लड़ाई” (1979): इस नाटक में सक्सेना ने जीवन की लड़ाई को मुख्य विषय बनाया है, जिसमें व्यक्तिगत और सामाजिक संघर्ष को दिखाया गया है.
- “अब गरीबी हटाओ” (1981): इस नाटक में गरीबी और आर्थिक असमानता के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया गया है, और इसका उद्देश्य समाज को समझाना और जागरूक करना है.
- “कल भात आएगा तथा हवालात” – इस नाटक को एकांकी नाटक एम.के.रैना के निर्देशन में प्रयोग द्वारा 1979 में मंचित किया गया. इसमें समाज की समस्याओं के प्रति उत्साह और चिंतन को प्रस्तुत किया गया है.
- “रूपमती बाज बहादुर तथा होरी धूम मचोरी” – इन नाटकों का मंचन 1976 में किया गया, और इनमें विभिन्न दृष्टिकोणों से समाज की चुनौतियों को दर्शाया गया है.
इन नाटकों में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने नाटककृति के माध्यम से समाज के मुद्दों को उजागर किया और लोगों को सोचने पर मजबूर किया है.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की काव्य – संग्रह
यहाँ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की काव्य रचनाओं का विस्तार से वर्णन दिया जा रहा है:
- “काठ की घंटियां” (1959) – यह काव्यरचना उनके प्रमुख काव्य रचनाओं में से एक है. इसमें वे भारतीय समाज की जीवनशैली और संस्कृति को व्यक्तिगत अनुभवों के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं.
- “बांस का पुल” (1963) – इस काव्यरचना में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने जीवन के संघर्ष और उसके सामाजिक पहलुओं को दर्शाया है.
- “एक सूनी नाव” (1966) और “गर्म हवाएं” (1966) – इन दो काव्य रचनाओं में वे प्रकृति के सौंदर्य को और मानव-प्राकृतिक संबंधों को छवि में प्रस्तुत करते हैं.
- “कुआनो नदी” (1973) – इस काव्य में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने नदी के किनारे की छवि को सुंदरता से चित्रित किया है.
- “जंगल का दर्द” (1976) – यह काव्य उनके संवादप्रधान लेखन का उदाहरण है, जिसमें मानव-प्राकृतिक संबंधों के प्रति उनकी गहरी जागरूकता प्रकट होती है.
- “खूंटियों पर टंगे लोग” (1982) – इस काव्यरचना में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने समाज के कुशलक्षेत्रों में होने वाले आलस्य और लापरवाही को प्रस्तुत किया है.
- “क्या कह कर पुकारूं” – इसमें प्रेम कविताएं हैं, जिनमें वे प्रेम के विभिन्न आयामों को छूने का प्रयास करते हैं.
- “कविताएं (1)” और “कविताएं (2)” – इनमें वे अपनी कविताओं का संग्रह प्रस्तुत करते हैं, जिनमें भारतीय समाज और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को छवि में दिखाते हैं.
- “कोई मेरे साथ चले” – इस काव्यरचना में उन्होंने अपने विचारों को और अपने साथी कवियों को साझा किया है.
- “मेघ आए” – इस काव्यरचना में वे मौसम और प्राकृतिक रूपों के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं.
- “काला कोयल” – इस काव्य में उन्होंने वन्यजीवों के जीवन को और उनके प्राकृतिक आवासों को छवि में प्रस्तुत किया है.
इन काव्य रचनाओं के माध्यम से सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने भारतीय समाज और प्राकृतिक सौंदर्य को अपनी अनूठी दृष
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सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कथा – साहित्य
इन कथा-साहित्य रचनाओं में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने समाज, मानवता, और समस्याओं के मुद्दे को गहराई से छूने का प्रयास किया है, और अपनी कथाओं के माध्यम से व्यक्तिगत और सामाजिक पहलुओं को उजागर किया है.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अपनी कहानियों को भारतीय और यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद किया है, जिससे उनका कथा-साहित्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता प्राप्त करता है.
- “पागल कुत्तों का मसीहा” (लघु उपन्यास) – 1977: यह लघु उपन्यास सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के कथा-साहित्य के प्रमुख कामों में से एक है. इसमें उन्होंने समाज के परिप्रेक्ष्य में एक पागल कुत्ते की कहानी को प्रस्तुत किया है, जो समाज की समस्याओं को सुनने और समझने का प्रतीक होता है.
- “सोया हुआ जल” (लघु उपन्यास) – 1977: इस लघु उपन्यास में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने पानी के महत्व को और जलसंकट के परिप्रेक्ष्य में किसानों की संघर्ष कहानी के माध्यम से दिखाया है.
- “उड़े हुए रंग” (उपन्यास) – यह उपन्यास 1974 में “सूने चौखटे” नाम से प्रकाशित हुआ था. इसमें उन्होंने समाज के रंगीनता और विविधता को छवि में प्रस्तुत किया है.
- “कच्ची सड़क” (1978): यह कथा उनके लघु कथा-साहित्य का हिस्सा है और विभिन्न मानव दरिद्रता के पहलुओं को प्रकट करता है.
- “अंधेरे पर अंधेरा” (1980): इस कथा में उन्होंने दुनियाभर की विभिन्न समस्याओं के विचार किए हैं, जैसे कि बेरोजगारी और आर्थिक कठिनाइयां.
- “सोवियत कथा संग्रह” (1978) – इस संग्रह में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने सात महत्वपूर्ण कहानियों का रूसी अनुवाद प्रस्तुत किया, जो सोवियत कथाओं को अपनी अनूठी दृष्टि से प्रस्तुत करते हैं.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की यात्रा संस्मरण
- “कुछ रंग कुछ गंध” (1971): इस संस्मरण में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अपनी यात्रा के दौरान की अनुभवों और दृश्यों का विवरण किया है, और यह उनके साहित्यिक दृष्टिकोण को प्रकट करता है.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की बाल कविता
- “बतूता का जूता” (1971): इस बाल कविता में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने छोटे बच्चों के लिए एक रोमांचक कहानी को कविता के रूप में प्रस्तुत किया है.
- “महंगू की टाई” (1974): इस कविता में वे बच्चों के माध्यम से महंगू की टाई के अल्पसंख्यक जीवन को प्रस्तुत करते हैं, और उनकी सोच को व्यक्त करते हैं.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की बाल नाटक
- “भों-भों खों-खों” (1975): यह बाल नाटक बच्चों के लिए मनोरंजनपूर्ण और सिखाने वाला है, जो उनके साहित्यिक और नृत्य कौशल को बढ़ाता है.
- “लाख की नाक” (1979): इस नाटक में बच्चों के माध्यम से महत्वपूर्ण सामाजिक संदेशों को पहुंचाने का प्रयास किया गया है, जैसे कि नेतृत्व और साझेदारी की महत्वपूर्ण भूमिका.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की संपादन
- “शमशेर” (मलयज के साथ – 1971): इस संपादन में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने मलयज के साथ मिलकर साहित्यिक कार्य किया.
- “रूपांबरा”: इस संपादन में वे साहित्यिक कार्य को संपादित करके साहित्य के प्रशंसकों के लिए उपलब्ध कराते हैं.
- “अंधेरों का हिसाब” (1981): इस संपादन में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने विभिन्न लेखकों की कहानियों का संपादन किया है, और इससे साहित्य प्रेमियों को विभिन्न रूपों में साहित्य का आनंद लेने का मौका मिलता है.
- “नेपाली कविताएं” (1982): इस संपादन में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने नेपाली कविताओं का संकलन किया है, जिससे नेपाली साहित्य को प्रमोट किया गया है.
- “रक्तबीज” (1977): इस संपादन में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने साहित्यिक कार्य को प्रस्तुत किया है, जिसमें वे विभिन्न लेखकों की रचनाओं को संकलित करते हैं और पठकों के लिए उपलब्ध कराते हैं.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की भाषा शैली
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की भाषा शैली विविधतापूर्ण और व्यापक होती है. उनके लेखन में व्याकरण का सख्त पालन किया जाता है और वे अपनी रचनाओं में भाषा को सुंदरता के साथ प्रयोग करते हैं.
उनकी भाषा सरल और सुगम होती है, जिससे पाठकों को उनकी कथाओं और कविताओं का आनंद आता है.
सक्सेना जी की भाषा शैली में गहराई भी होती है, और वे अपने लेखन में साहित्यिक और दार्शनिक विचारों को सुंदरता से प्रस्तुत करते हैं.
उनके कविताओं में भाषा की छवि को बढ़ावा देने के लिए अलंकारों का उपयोग किया जाता है, जो उनके काव्य को और भी आकर्षक बनाता है.
वे अपनी कथाओं और कविताओं में भारतीय समाज, संस्कृति, और मानवता के मुद्दे पर गंभीर चिंतन करते हैं, और उनकी भाषा इस चिंतन को सजीवता से प्रकट करती है.
सक्सेना जी की भाषा शैली सहृदयी, सुंदर, और प्रभावशाली होती है, जिससे उनके लेखन का साहित्यिक और सामाजिक महत्व बढ़ता है.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की काव्यगत विशेषताएँ pdf
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की काव्यगत विशेषताएँ उनके साहित्यिक योगदान को अद्वितीय बनाती हैं. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता कथ्य और शिल्प के दोनों पहलुओं पर महत्वपूर्ण ध्यान देती है. उनकी रचनाएँ सामान्यत: स्पष्ट, सीधी, और सहज होती हैं.
लेकिन कई बार उन्होंने विशेष रूप से कथ्य पर बल दिया है. उनके काव्य में रंग, ध्वनि, और छवियों का विविधता उनकी कविता को विशेषत: बनाता है.
इनकी कविता विचारशीलता के साथ-साथ अत्यधिक छापने वाली होती है, जिससे वे गद्य के आस-पास हो जाते हैं.
आखिरकार, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता एक अद्वितीय संघर्ष का परिणाम है, जो कथ्य और शिल्प को सुंदरता के साथ जोड़ता है. उनकी काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- व्यापक विचारधारा: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की काव्यगत विशेषता में उनकी व्यापक विचारधारा शामिल है, जिसमें समाज, संस्कृति, मानवता, और साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर गहरा विचार किया गया है.
- रसवाद: उनकी कविताओं में रस का खास महत्व है. वे भावनाओं को रसों में प्रस्तुत करते हैं, जिससे पाठकों का भावनात्मक संवाद उत्पन्न होता है.
- अलंकारों का उपयोग: सक्सेना जी अलंकारों का सवाल नहीं करते हैं. उन्होंने अलंकारों का आदान-प्रदान किया है जो उनके काव्य को और भी आकर्षक और सुंदर बनाते हैं.
- भाषा का सुंदर उपयोग: उनकी काव्यगत विशेषता में भाषा का सुंदर और विविध उपयोग है. वे भाषा को साहित्यिकता के साथ प्रयोग करते हैं, जिससे उनकी रचनाओं की भाषा बहुत ही प्रभावशाली होती है.
- साहित्यिक और सामाजिक संवाद: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के काव्य में साहित्यिक और सामाजिक संवाद का अद्वितीय आदान-प्रदान होता है. उनकी कविताओं और नाटकों में समाज के मुद्दे, मानवीय संबंध, और व्यक्तिगत अनुभवों का माध्यमिकता से विचार किया जाता है.
- साहित्यिक सौन्दर्य: उनकी काव्यरचनाएं साहित्यिक सौन्दर्य की मिसाल होती हैं. उनकी कविताओं में छवियों का वर्णन और स्थान-काल का विविधता साहित्यिक रूप से उत्कृष्ट होते हैं.
- समाज सेवा की भावना: सक्सेना जी के काव्य में समाज सेवा की भावना अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है. उन्होंने अपनी रचनाओं में समाज के दुख-दर्द को प्रकट किया और समाज को सुधारने के उपायों का सुझाव दिया.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की यह काव्यगत विशेषताएँ उनके साहित्यिक योगदान को एक अनूठा महत्व देती हैं और उन्हें भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण लेखकों में से एक बनाती हैं.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की साहित्यिक विशेषताएँ
सर्वेश्वर जी एक महान कवि एवं साहित्यकार थे जिन्होंने सहित के क्षेत्र में अनेको कार्य किये और इनके रचनाये अद्भुत साबित हुए. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की साहित्यिक विशेषताएँ:
- सरल और प्राकृतिक भाषा: उनकी रचनाओं में भाषा सरल और प्राकृतिक होती है, जिससे पाठकों को सहजता से समझने में मदद मिलती है.
- समाजिक चेतना: उनकी कविताओं में समाज के मुद्दे, आधारिक समस्याएं, और मानवीय दुखभरे पहलु पर ध्यान केंद्रित होते हैं.
- प्राकृतिक छायाचित्रण: उनकी कविताओं में आलोचना, वात्सल्य, और प्रेम के माध्यम से प्राकृतिक छायाचित्रण होता है, जिससे पठनकार की भावनाओं का सार्थक अनुभव होता
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना पुरस्कार
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना को सन 1983 में उनके कविता संग्रह ‘खूँटियों पर टंगे लोग’ के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से नवाजा गया. जिसमें उन्होंने अपनी अद्वितीय कविताओं के माध्यम से समाजिक और मानविक विषयों पर अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत किया था.
इस पुरस्कार से उनके साहित्यिक योगदान को महत्वपूर्ण रूप से मान्यता गया और उन्हें भारतीय साहित्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ.
इस पुरस्कार से उनका साहित्यिक योगदान मान्यता और सम्मानित किया गया.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना को 1983 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था जो भारत सरकार द्वारा दिया जाता है.
यह पुरस्कार भारतीय साहित्य क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करने वाले लोगों को मान्यता है और उनके साहित्यिक योगदान को सराहता है.
FAQs: ज्यादातर पूछे जाने वाले सवाल
प्रश्न: सर्वेक्षण दयाल सक्सेना का जन्म कब हुआ?
उत्तर: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म 15 सितम्बर सन् 1927 ई० को उत्तर प्रदेश में हुआ था.
प्रश्न: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना को किस रचना पर कौन सा सम्मान प्राप्त हुआ?
उत्तर: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना को उनकी कविता संग्रह “खूँटियों पर टंगे लोग” पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ था. यह पुरस्कार सन 1983 में राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस कविता संग्रह के लिए सम्मानित किया गया था.
प्रश्न: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के अंतर्गत बलिया जिले में सन 1927 ईस्वी को हुआ था.
प्रश्न: काठ की घंटियाँ काव्य संग्रह के रचनाकार कौन हैं?
उत्तर: “काठ की घंटियाँ” काव्य संग्रह के रचनाकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना हैं.
प्रश्न: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की भाषा शैली एवं दो रचनाएं
उत्तर: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की भाषा शैली अलंकृत और व्यक्तिगत है. “काठ की घंटियाँ” और “खूँटियों पर टंगे लोग” उनकी प्रमुख रचनाएं हैं, जो अनुभवों को सुंदरता से व्यक्त करती हैं.
प्रश्न: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के माता-पिता का नाम क्या है
उत्तर: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के माता-पिता का नाम विश्वेश्वर दयाल और सौभाग्यवती देवी था जिन्होंने इन्हें साहित्य के लिए हमेसा से प्रेरित किया.
प्रश्न: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताएं
उत्तर: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताएं “काठ की घंटियां”, “बांस का पुल” और “एक सूनी नाव” आदि है जो व्यक्तिगत और समाजिक मुद्दों पर आधारित हैं. उनकी कविताओं में प्राकृतिकता, संवाद, और भाषा की श्रेष्ठता होती है.
निषकर्ष
प्रिय छात्रो आज हम लोगो ने ‘Sarveshwar Dayal Saxena Ka Jivan Parichay’ को अच्छे से जाना है. इसके साथ ही हमलोगों ने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जीवन परिचय का पीडीऍफ़ फाइल भी आप लगो के साथ साझा किया है जिसे आपने डाउनलोड भी कर लिया होगा.
मैंने इस पीडीऍफ़ फाइल को खुद अपने से तैयार किया था ताकि आप लोग सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जीवन परिचय को अरु अच्छे से याद कर पाए.
इसके अलवा आपको उसमे सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की काव्यगत विशेषताएँ pdf में अंदर ही लिखा हुआ मिलेगा. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना एक भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण कवि और लेखक थे.
उन्होंने अपने जीवन के दौरान उत्कृष्ट काव्य, कथा, नाटक, यात्रा संस्मरण, बच्चों के लिए कविताएं, बाल नाटक, और संपादन कार्य में अपनी माहिरी प्रकट की. सर्वेश्वर जी को इनकी रचनाओ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा गया.
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